iGrain India - चंडीगढ़ । भू जल तथा भूमिगत जल के तेजी से घटते स्तर को देखते हुए पंजाब सरकार सामान्य धान की खेती को हतोत्साहित करते हुए अन्य वैकल्पिक फसलों की खेती को प्रोत्साहित कर रही है लेकिन किसानों की मानसिकता बदलने में उसे पर्याप्त सफलता नहीं मिल रही है।
इसका प्रमुख कारण यह है कि धान के कुल विपणन योग्य स्टॉक की खरीद केन्द्र सरकार द्वारा एक निश्चित दाम (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर की जाती है।
हालांकि कपास, दलहन, तिलहन एवं मोटे अनाजों के लिए भी समर्थन मूल्य निर्धारित होता है लेकिन इसकी सरकारी खरीद की गारंटी नहीं होती है।
पंजाब के किसानों को मूंग एवं सूरजमुखी का खट्टा अनुभव मिल रहा है जिसकी बिक्री न्यूनतम समर्थन मूल्य से काफी नीचे दाम पर करने के लिए उन्हें विवश होना पड़ा है।
पंजाब सरकार ने धान की रोपाई के बजाए सीधी बिजाई (डीएसआर) विधि को प्रोत्साहन देने का निर्णय लिया क्योंकि इसके लिए पानी की कम जरूरत पड़ती है मगर तमाम प्रयासों के बावजूद इसमें किसानों की दिलचस्पी बहुत कम देखी जा रही है क्योंकि उन्हें संदेह है कि इस पद्धति से खेती करने पर धान की उपज दर घट जाएगी।
प्राप्त आंकड़ों के अनुसार पंजाब में डीएसआर विधि से इस बार मुक्तसर जिले में करीब 47 हजार एकड़, फाजिल्का में 43 हजार, भटिंडा में 12 हजार, फिरोजपुर में 9 हजार, संगरूर में 4550 तथा लुधियाना में 4500 एकड़ जमीन में धान की बिजाई हुई।
इसके अलावा मनसा, तरन तारन, मोगा, मोहाली, एसबीएस नगर, फतेहगढ़ साहिब एवं रोपड़ जिले में भी इस विधि से धान की सीमित खेती हुई है।
कपास का मामला भी कुछ ऐसा ही है। वहां इस बार 3 लाख हेक्टेयर में कपास की बिजाई का लक्ष्य रखा गया था जबकि वास्तविक क्षेत्र 1.75 लाख हेक्टेयर पर ही पहुंच सका जो पिछले अनेक वर्षों का न्यूनतम स्तर है।
दरअसल पंजाब में प्राकृतिक आपदाओं के साथ-साथ रोगों-कीड़ों के प्रकोप से भी कपास की फसल को अक्सर भारी नुकसान होता रहा है जिससे इसकी खेती के प्रति किसानों का उत्साह एवं आकर्षण तेजी से घटता जा रहा है।
डीएसआर विधि से इस बार पंजाब में 5 लाख एकड़ में धान की खेती का लक्ष्य रखा गया है जबकि वास्तविक रकबा 1.51 लाख एकड़ तक ही पहुंच सका। वहां सामान्य श्रेणी के धान की खेती लगभग समाप्त हो चुकी है और अब बासमती धान की खेती चल रही है।
इसका लक्ष्य 6 लाख हेक्टेयर नियत हुआ है और इसके हासिल हो जाने की उम्मीद की जा रही है क्योंकि इस वर्ष बासमती धान का बाजार भाव काफी ऊंचा रहा जिससे किसानों को अत्यन्त आकर्षक आमदनी हासिल हुई।
वहां ग्रीष्मकालीन मूंग का रकबा गत वर्ष के 1.30 लाख एकड़ से घटकर इस बार करीब 53 हजार एकड़ पर सिमट गया। मक्का के बिजाई क्षेत्र में लगभग स्थिरता बनी हुई है। इस वर्ष पंजाब में भारी बारिश से कई क्षेत्र में फसलें जलमग्न हो गई हैं।