iGrain India - नई दिल्ली । भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार यद्यपि चालू वर्ष के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर मानसून की वर्षा 1 जून से 12 जुलाई की अवधि में सामान्य हुई है लेकिन वर्षा का वितरण काफी असमान या बेतरतीब देखा जा रहा है।
21 जुलाई तक देश के 41 प्रतिशत जिलों में सामान्य स्तर के मुकाबले बारिश कम, बहुत कम या अपर्याप्त हुई थी। अभी मानसून सीजन ने आधा रास्ता भी पार नहीं किया है इसलिए यह देखना बाकी है कि आगामी सप्ताहों के दौरान गंगा- सिंधु के मैदानी भाग में बारिश की हालत कैसी रहती है और खासकर क्षेत्रीय आधार पर इसके वितरण में कुछ सुधार आता है या नहीं। इसके आधार पर वहां कृषि उत्पादन में उतार-चढ़ाव आ सकता है।
खरीफ सीजन के सबसे प्रमुख खाद्यान्न- धान का उत्पादन पंजाब- हरियाणा के साथ गंगा-सिंधु के मैदानी भाग तथा दक्षिण में कावेरी एवं गोदावरी नदी के बेल्ट में सबसे ज्यादा होता है।
इसमें उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश तमिलनाडु, उड़ीसा एवं आसाम जैसे राज्य मुख्य रूप से शामिल हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर धान का उत्पादन क्षेत्र पहले गत वर्ष से पिछड़ रहा था लेकिन अब आगे निकल गया है। लेकिन कुछ क्षेत्रों में प्रचंड बारिश एवं विनाशकारी बाढ़ से फसल को नुकसान भी होने की सूचना भी मिल रही है।
आईएमडी ने आगामी समय में गंगा-सिंधु के मैदानी भाग में मौसम शुष्क एवं गर्म रहने का अनुमान व्यक्त किया है जिससे वहां धान की रोपाई एवं प्रजाति में बाधा पड़ने की संभावना है।
उत्तर प्रदेश में मानसून की हालत इस बार काफी हद तक सामान्य रही है लेकिन आगे इसमें खतरा बढ़ सकता है। श्रावस्ती जिले में बारिश का अभाव देखा जा रहा है जिससे धान के पौधे सूखने लगे हैं।
कई क्षेत्रों में धान की रोपाई के लिए अभी तक पर्याप्त वर्षा नहीं हुई है। धान की नर्सरी भी सीमित है। फिलहाल धान-चावल के उत्पादन में गिरावट आने का अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी।
यदि कम समय में पकने वाली किस्मों में धान की खेती को बढ़ावा दिया जाए तो उत्पादन बढ़ाने के लिए वह अच्छा विकल्प साबित हो सकता है। अल नीनो मौसम चक्र तथा हिन्द महासागर का डावपोल गंगा-सिंधु के मैदान में कृषि उत्पादन का भाग्य निर्धारित कर सकता है।