iGrain India - नई दिल्ली । अगले एक दशक के दौरान यानी वर्ष 2032 तक वैश्विक स्तर पर चावल तथा गेहूं के उत्पादन में जितनी बढ़ोत्तरी होगी उसमें अधिकांश हिस्सेदारी भारत की रहेगी। ओईसीडी तथा फाओ द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2032 तक गेहूं का वैश्विक उत्पादन 760 लाख टन की वृद्धि के साथ 85.50 करोड़ टन पर पहुंच जाने का अनुमान है।
भारत दुनिया में इसका दूसरा सबसे प्रमुख उत्पादक देश है और यहां इसके उत्पादन में अगले दशक के दौरान सबसे ज्यादा वृद्धि हो सकती है। उत्पादन में कुल वृद्धि में भारत की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत रहने के आसार हैं जिसका प्रमुख कारण उच्च उपज दर वाले उन्नत बीजों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल होना तथा बिजाई क्षेत्र का बढ़ना है। इसके अलावा रूस, कनाडा, अर्जेन्टीना एवं पाकिस्तान में भी गेहूं के उत्पादन में पहला स्थान हासिल कर सकता है।
जहां तक चावल का सवाल है तो वर्ष 2032 तक इसका वैश्विक उत्पादन उछलकर 57.70 करोड़ टन पर पहुंच जाने का अनुमान है और इसके उत्पादन की कुल वृद्धि में भी भारत की भागीदारी सबसे ज्यादा रहेगी।
चीन दुनिया में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। वहां पिछले दशक के दौरान इसके उत्पादन में वृद्धि की जो गति रही वह चालू दशक में भी बरकरार रहने की संभावना है।
रिपोर्ट में समीक्षाधीन अवधि के दौरान मक्का का वैश्विक उत्पादन 16.50 करोड़ टन बढ़कर 1.36 अरब टन के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच जाने का अनुमान लगाया गया है।
अमरीका, ब्राजील, अर्जेन्टीना एवं भारत में इसके उत्पादन में सर्वाधिक बढ़ोत्तरी होने की उम्मीद व्यक्त की है।
भारत में पिछले पांच-सात वर्षों के दौरान गेहूं तथा चावल के उत्पादन में शानदार बढ़ोत्तरी हुई है जिससे न केवल घरेलू मांग एवं जरूरत को आसानी से पूरा किया गया बल्कि निर्यात में भी इजाफा हुआ।
भारत वर्ष 2012-13 से ही संसार में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक देश बना हुआ है और इसके वैश्विक निर्यात बाजार में 40 प्रतिशत से अधिक का योगदान दे रहा है। वर्ष 2021-22 के दौरान भारत से गेहूं का भी शानदार निर्यात हुआ था। अब गेहूं तथा कुछ किस्मों के चावल का निर्यात बंद कर दिया गया है।