iGrain India - नई दिल्ली । ऐसा प्रतीत होता है कि देश का बहुत बड़ा भाग इस बार प्राकृतिक आपदाओं के चक्रव्यूह में फंसा हुआ है जिससे खरीफ फसलों की पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है।
दक्षिण-पश्चिम मानसून इस बार काफी हद तक ग़ैर व्यवस्थित या बेतरतीब रहा है। जिन राज्यों में वर्षा का जोर रहा वहां अत्यन्त मूसलाधार बारिश हुई और भयंकर बाढ़ आ गई जिससे खरीफ फसलों को काफी नुकसान होने की संभावना है।
पंजाब-हरियाणा में आई बाढ़ से धान की फसल क्षतिग्रस्त हुई है तो गुजरात में मूंगफली सहित अन्य खरीफ फसलों को नुकसान हुआ है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश एवं हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में भी भारी वर्षा एवं बाढ़ से कई इलाके प्रभावित हुए हैं।
दूसरी ओर महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश में मानसून की बारिश का अभाव रहा है। हालांकि अब महाराष्ट्र में बारिश का दौर शुरू हुआ है लेकिन इससे फसलों की बिजाई पर असर पड़ सकता है।
दलहन-तिलहन फसलों की खेती के लिए पानी का जमाव नहीं होना चाहिए। कम वर्षा के कारण पूर्वी राज्यों में एक बार फिर धान की रोपाई में बाधा पड़ रही है जिससे इसके कुल क्षेत्रफल एवं उत्पादन में गिरावट के प्रति चिंता बढ़ती जा रही है।
ध्यान देने की बात है कि पंजाब, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, हरियाणा एवं उड़ीसा केन्द्रीय पूल में धान-चावल का योगदान देने वाले पांच शीर्षस्थ प्रान्त हैं। इसके अलावा उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, बिहार एवं मध्य प्रदेश में भी धान-चावल की अच्छी सरकारी खरीद होती है।
बाढ़-वर्षा से दलहन-तिलहन एवं कपास की फसल को भी नुकसान होने का अनुमान है और कई क्षेत्रों में इसकी दोबारा बिजाई की आवश्यकता पड़ेगी।
खरीफ फसलों की बिजाई अगस्त में भी जारी रहेगी इसलिए अभी से क्षेत्रफल या उत्पादन में भारी गिरावट आने का अनुमान लगाना ठीक नहीं होगा। खरीफ फसलों का कुल उत्पादन क्षेत्र तो गत वर्ष से आगे निकल गया है लेकिन रकबे की वास्तविक तस्वीर के लिए अगस्त के अंत तक इंतजार करना उचित रहेगा।
जुलाई-अगस्त को सर्वाधिक वर्षा वाला महीना माना जाता है। देखना यह है कि अगस्त माह के दौरान पूर्वी राज्यों में मानसून का प्रदर्शन कैसा रहता है क्योंकि यह फसल की बिजाई के साथ-साथ प्रगति की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होगा।