iGrain India - नई दिल्ली । दुनिया के सबसे प्रमुख चावल निर्यातक देश- भारत के एक निर्णय से वैश्विक बाजार में खाद्य संकट घहराने की आशंका है। भारत सरकार ने 20 जुलाई को अचानक सफेद (कच्चे) चावल के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दिया जिससे वैश्विक बाजार में हलचल एवं चिंता बढ़ गई।
तात्कालिक प्रतिक्रिया के तौर पर थाईलैंड, वियतनाम, पाकिस्तान और म्यांमार जैसे देशों में कच्चे चावल के निर्यात ऑफर मूल्य में बढ़ोत्तरी हो गई। थाईलैंड में चावल का निर्यात मूल्य अपेक्षाकृत तेजी से बढ़ रहा है क्योंकि वहां सरकार ने अल नीनो के खतरे को देखते हुए किसानों को दूसरे सीजन में धान की खेती से दूर रहने के लिए कहा है जिससे चावल के उत्पादन में स्वाभाविक रूप से कमी आ जाएगी।
वैश्विक चावल निर्यात में भारत की भागीदारी 40 प्रतिशत से अधिक रहती है। वैश्विक मांग एवं आपूर्ति के बीच संतुलन बनाने में भारतीय चावल का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान रहता है इसलिए यहां से निर्यात बंद होने पर समीकरण बिगड़ने लगता है।
अफ्रीका तथा एशिया के अनेक देश भारतीय चावल पर काफी हद तक आश्रित रहते हैं क्योंकि यह अपेक्षाकृत सस्ता होता है और भारत में पर्याप्त स्टॉक भी रहता है।
इस बार स्थिति कुछ खराब या अनिश्चित देखी जा रही है इसलिए सरकार ने एहतियात के तौर पर कच्चे चावल का निर्यात रोका है। सेला ग़ैर बासमती चावल एवं बासमती चावल का निर्यात पूरी तरह खुला हुआ है और इस पर कोई शुल्क भी लगता है।
कुछ विश्लेषकों को लगता है कि घरेलू प्रभाग में हालात ज्यादा बिगड़ने पर सरकार सेला गैर बासमती चावल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगाने का निर्णय ले सकती है या उस पर मात्रात्मक नियंत्रण लगा सकती है।
वैसे फिलहाल सरकार की ओर से इस तरह का कोई संकेत नहीं दिया गया है लेकिन यह ध्यान रखना आवश्यक है कि केन्द्र सरकार कोई पूर्व सूचना दिये बगैर हमेशा आकस्मिक निर्णय लेती है।
खरीफ कालीन धान का रकबा गत वर्ष से आगे निकल गया है लेकिन पंजाब-हरियाणा जैसे राज्यों में भारी वर्षा एवं भयंकर बाढ़ से इसकी फसल को नुकसान हुआ है।
देश के पूर्वी राज्यों में इस वर्ष भी मानसूनी वर्षा का अभाव देखा जा रहा है जिससे धान के क्षेत्रफल में वहां गिरावट देखी जा रही है। सरकार के पास भी चावल का स्टॉक घटकर पिछले छह साल के निचले स्तर पर आ गया है।