iGrain India - इरोड । खरीफ सीजन की एक महत्वपूर्ण मसाला फसल- हल्दी की बिजाई में इस बार शुरूआती चरण के दौरान किसानों की दिलचस्पी काफी घट गई।
अप्रैल में उत्पादकों ने इसकी बिजाई पर ध्यान नहीं दिया क्योंकि उस समय इसका बाजार भाव महज 6000-7000 रुपए प्रति क्विंटल के बीच चल रहा था जबकि इसका लागत खर्च बढ़कर 9000 रुपए प्रति क्विंटल से ऊपर पहुंच गया है।
अब कीमतों में भारी वृद्धि हो रही है लेकिन हल्दी की बिजाई का आदर्श समय जून में ही समाप्त हो गया था। उस समय मानसून की हालत कमजोर थी जिससे किसानों को बिजाई में कठिनाई हुई।
तमिलनाडु के इरोड में अवस्थित संस्था- टर्मरिक फार्मर्स एसोसिएशन के प्रधान का कहना है कि जिस समय बिजाई का दौर चल रहा था उस समय न तो मौसम एवं वर्षा और न ही बाजार की हालत अनुकूल थी।
हल्दी नौ माह की लम्बी अवधि वाली मसाला फसल है जिसकी बिजाई अप्रैल-जून के दौरान तथा कटाई-तैयारी जनवरी-मार्च के बीच होती है। देश में इसके प्रमुख उत्पादक राज्यों में तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु शामिल है। इसके अलावा उड़ीसा एवं कर्नाटक सहित कुछ अन्य प्रांतों में भी इसका थोड़ा-बहुत उत्पादन होता है।
हालांकि इंडोनेशिया में हल्दी की नई फसल की कटाई-तैयारी चल रही है मगर वहां फसल कमजोर बताई जा रही है। घरेलू प्रभाग में भी स्टॉक कम बचा है जबकि अगला उत्पादन कुछ घटने की संभावना है।
इसके फलस्वरूप अगले कुछ महीनों तक देश के अंदर एवं वैश्विक बाजार में हल्दी की आपूर्ति एवं उपलब्धता की स्थिति जटिल रहने की संभावना है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पिछले कई महीनों से भारतीय हल्दी की मांग काफी मजबूत बनी हुई है।
राष्ट्रीय स्तर पर पिछले साल के मुकाबले चालू वर्ष के दौरान हल्दी के बिजाई क्षेत्र में 10-15 प्रतिशत की गिरावट आने की संभावना है।
मसाला बोर्ड के आंकड़ों से पता चलता है कि 2022-23 के सीजन में इसका उत्पादन क्षेत्र 3.24 लाख हेक्टेयर के करीब रहा था। समझा जाता है कि आगामी महीनों के दौरान हल्दी एवं जीरा का बाजार भाव एक नया आधार तलाशने के लिए ऊपर उठ सकता है।