iGrain India - कोयम्बटूर । दक्षिण भारत में कॉटन यार्न का भाव पिछले कुछ समय से लगभग स्थिर बना हुआ है जबकि शीघ्र ही त्यौहारी सीजन आरंभ होने वाला है।
आमतौर पर त्यौहारी सीजन शुरू होने से एक-डेढ़ माह पूर्व यानी जुलाई से ही कॉटन यार्न एवं फैब्रिक्स में अच्छी मांग निकलने लगती है और तदनुरूप कीमतों में सुधार आने लगता है लेकिन इस बार परिदृश्य कुछ भिन्न नजर आ रहा है।
उधर गुजरात में आवक की गति धीमी रहने से रूई का भाव पुनः तेज होने लगा है जिसे देखते हुए मिलर्स कॉटन यार्न एवं वस्त्र उत्पादों का दाम तो बढ़ाना चाहते हैं क्योंकि लागत खर्च बढ़ गया है लेकिन उन्हें भय है कि यदि कीमतों में बढ़ोत्तरी हुई तो बचे-खुचे खरीदार भी इसकी खरीद में पीछे हट जाएंगे।
हालांकि अभी देश में रूई का स्टॉक इतना है जिससे घरेलू मांग एवं जरूरत को पूरा करने में कठिनाई नहीं होगी मगर मंडियों में इसकी भरपूर आवक नहीं हो रही है। विदेशों से रूई का आयात हो रहा है।
इधर कपास की बिजाई अंतिम चरण की ओर बढ़ रही है। अक्टूबर से इसके नए माल की जोरदार आपूर्ति शुरू हो सकती है लेकिन तब तक कीमतों में ज्यादा नरमी आना संभव नहीं लगता है।
समझा जाता है कि कॉटन मिलों को प्रत्येक वर्षा त्यौहारी सीजन से बड़ी उम्मीद रहती है क्योंकि इसमें विभिन्न कॉटन उत्पादों का अच्छा कारोबार होता है मगर चालू वर्ष के दौरान यह उम्मीद फलीभूत होती नहीं दिख रही है।
इससे उद्योग का चिंतित होना स्वाभाविक ही है। तिरुपुर, मुम्बई, दिल्ली एवं लुधियाना सहित अन्य प्रमुख मंडियों में सीमित कारोबार के बीच कॉटन यार्न का भाव लगभग स्थिर बना हुआ है और इसकी निर्यात मांग भी ज्यादा मजबूत नहीं है।
16 अगस्त के बाद औपचारिक रूप से त्यौहारी सीजन आरंभ होने वाला जिसमें अब ज्यादा समय नहीं बचा है।