iGrain India - मुम्बई । देश के एक महत्वपूर्ण कृषि उत्पादक राज्य- महाराष्ट्र में चालू वर्ष के दौरान दक्षिण-पश्चिम मानसून की आंख मिचौनी के कारण वर्षा ने केवल कम हुई बल्कि इसकी हालत अनिश्चित और अनियमित भी रही जिससे सोयाबीन एवं रागी को छोड़कर अन्य अधिकांश प्रमुख खरीफ फसलों के उत्पादन क्षेत्र में गिरावट दर्ज की गई।
राज्य में खरीफ फसलों की बिजाई का आदर्श समय शीघ्र ही समाप्त होने वाला है। राज्य कृषि विभाग के मुताबिक महाराष्ट्र में दलहन फसलों के रकबे में भारी गिरावट आई है।
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार पिछले साल के मुकाबले चालू खरीफ सीजन के दौरान महाराष्ट्र में अरहर (तुवर) का उत्पादन क्षेत्र गिरकर 10 लाख हेक्टेयर, मूंग का बिजाई क्षेत्र 1.00 लाख हेक्टेयर घटकर 1.67 लाख हेक्टेयर तथा उड़द का क्षेत्रफल 1.20 लाख हेक्टेयर लुढ़ककर 2.28 लाख हेक्टेयर पर सिमट गया।
उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र दलहनों के उत्पादन में देश का एक अग्रणी राज्य है और खासकर तुवर का उत्पादन वहां पैमाने पर होता है। क्षेत्रफल घटने से इसके उत्पादन में कमी आ सकती है।
अन्य खरीफ फसलों के अंतर्गत महाराष्ट्र में पिछले साल के मुकाबले चालू वर्ष के दौरान धान का उत्पादन क्षेत्र 25 हजार हेक्टेयर गिरकर 12.95 लाख हेक्टेयर, ज्वार का बिजाई क्षेत्र 38 हजार हेक्टेयर घटकर 1.07 लाख हेक्टेयर तथा बाजरा का रकबा 58 हजार हेक्टेयर लुढ़ककर 3.35 लाख हेक्टेयर रह गया लेकिन रागी के क्षेत्रफल में कुछ सुधार दर्ज किया गया।
तिलहन फसलों के संवर्गों में वहां मूंगफली का उत्पादन क्षेत्र 23 हजार हेक्टेयर घटकर 1.30 लाख हेक्टेयर, तिल का बिजाई क्षेत्र 2 हजार हेक्टेयर फिसलकर 4 हजार हेक्टेयर तथा कपास का क्षेत्रफल 28 हजार हेक्टेयर गिरकर 41.58 लाख हेक्टयेर रह गया। उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र देश में अरहर, कपास एवं सोयाबीन का दूसरा सबसे प्रमुख उत्पादक राज्य है।
दक्षिण-पश्चिम मानसून की हालत महाराष्ट्र में इस बार कमजोर रही। वर्षा लेट से तथा कम होने के कारण लगभग सभी प्रमुख खरीफ फसलों की बिजाई में देर हो गई और इसका रकबा गत वर्ष से पीछे रह गया।
चूंकि अधिकांश जिलों में बिजाई का समय लगभग समाप्त हो चुका है इसलिए क्षेत्रफल में अब ज्यादा सुधार आने की गुंजाइश नहीं है। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक मौसम की हालत पूरी तरह अनुकूल नहीं होने से खरीफ फसलों की औसत उपज दर में भी गिरावट आने की आशंका है।