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एमपी, कर्नाटक एवं महाराष्ट्र में मक्का का क्षेत्रफल बढ़ा

प्रकाशित 23/08/2023, 12:01 pm
एमपी, कर्नाटक एवं महाराष्ट्र में मक्का का क्षेत्रफल बढ़ा
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iGrain India - नई दिल्ली । मानसून की बारिश कम तथा देर से होने के कारण देश के कुछ महत्वपूर्ण उत्पादक राज्यों में किसानों को कपास एवं दलहनों के बजाए मोटे अनाजों और खासकर मक्का की खेती पर ध्यान देने का मौका मिला।

इसमें मध्य प्रदेश, कर्नाटक एवं महाराष्ट्र जैसे राज्य शामिल हैं। राष्ट्रीय स्तर पर चालू खरीफ सीजन के दौरान 18 अगस्त तक मक्का का उत्पादन क्षेत्र बढ़कर 81.24 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया जो पिछले साल की समान अवधि के बिजाई क्षेत्र 79.41 लाख हेक्टेयर से ज्यादा है।

मालूम हो कि मक्का की फसल को सिंचाई के लिए अपेक्षाकृत कम पानी की आवश्यकता पड़ती है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार पिछले साल की तुलना में चालू खरीफ सीजन के दौरान मक्का का उत्पादन क्षेत्र मध्य प्रदेश में 16 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 17.40 लाख हेक्टेयर,

कर्नाटक में 13.79 लाख हेक्टेयर से सुधरकर 14.53 लाख हेक्टेयर तथा महाराष्ट्र में 8.74 लाख हेक्टेयर से सुधरकर 8.77 लाख हेक्टेयर पर पहुंचा। इसी तरह मक्का का बिजाई क्षेत्र उत्तर प्रदेश में 7.49 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 7.54 लाख हेक्टेयर,

झारखंड में 1.99 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 2.19 लाख हेक्टेयर तथा तेलंगाना में 2.01 लाख हेक्टेयर से सुधरकर 2.05 लाख हेक्टेयर पर पहुंचा। दूसरी ओर मक्का का क्षेत्रफल राजस्थान में 9.42 लाख हेक्टेयर एवं गुजरात में 2.82 लाख हेक्टेयर पर सिमट गया जो गत वर्ष से कुछ ही कम रहा। 

भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान के निदेशक के अनुसार कर्नाटक एवं महाराष्ट्र में मानसून के शुरूआती चरण में बारिश कम हुई इसलिए किसानों ने मक्का का क्षेत्रफल बढ़ाने का प्रयास किया।

मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश में भी किसान इस मोटे अनाज की खेती की ओर आकर्षित हुए। मक्का की फसल अपेक्षाकृत जल्दी तैयार होती है। फसल की हालत लगभग सभी प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में अच्छी है और पिछले साल की भांति इसका ठीक ढंग से विकास हो रहा है।

इसे देखते हुए चालू खरीफ सीजन में मक्का का उत्पादन कुछ बेहतर होने की उम्मीद है। केन्द्रीय कृषि मंत्रालय के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार 2022-23 सीजन के दौरान मक्का का कुल घरेलू उत्पादन तेजी से बढ़कर 359.10 लाख टन के नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया।

मक्का की फसल को फाल आर्मी वर्म कीट के प्रकोप से अक्सर नुकसान होता है जिसकी रोकथाम का प्रयास होना जरुरी है। किसानों को इसकी विधि तो मालूम है लेकिन उस पर 3-4 हजार रुपए प्रति एकड़ का अतिरिक्त खर्च बैठता है।

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