iGrain India - मुम्बई । सबसे प्रमुख खरीदार देश चीन में अर्थ व्यवस्था के विकास की गति धीमी रहने की संभावना से रूई का भाव नरम पड़ गया है। पिछले दिन यह 0.23 प्रतिशत की गिरावट के साथ 59700 रुपए प्रति कैंडी (356 किलो) पर आ गया।
वैश्विक स्तर पर 2022-23 की तुलना में 2023-24 के मार्केटिंग सीजन (अक्टूबर-सितम्बर) के दौरान रूई का उत्पादन 3 प्रतिशत घटने तथा कुछ उपयोग लगभग स्थिर रहने की उम्मीद है जिससे बकाया अधिशेष स्टॉक में कमी आएगी।
उधर भारत में एक अग्रणी व्यापारिक संस्था- कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने 2022-23 सीजन के दौरान 311.18 लाख गांठ कपास के उत्पादन का अनुमान लगाया है जबकि प्रत्येक गांठ 170 किलो की होती है।
एसोसिएशन के अनुसार अक्टूबर 2022 से जुलाई 2023 के दौरान रूई की कुल आपूर्ति 332.30 लाख गांठ की हुई जिसमें 296.80 लाख गांठ की घरेलू फसल की आवक, 11.50 लाख गांठ का आयात एवं 24 लाख गांठ का पिछला बकाया स्टॉक शामिल था।
पंजाब में 2021-22 के मुकाबले 2022-23 सीजन के दौरान कपास की कुल आवक 28.89 लाख क्विंटल से करीब दो-तिहाई घटकर 8.70 लाख क्विंटल पर सिमट गई जिससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि वहां कपास के उत्पादन में भारी गिरावट आई।
चालू खरीफ सीजन के दौरान गुजरात में कपास का उत्पादन क्षेत्र बढ़कर पिछले 8 वर्षों के शीर्ष स्तर पर पहुंच गया जबकि वह देश में इसका सबसे प्रमुख उत्पादक राज्य है। गुजरात में रूई के एक प्रमुख स्पॉट मार्केट- राजकोट में भाव पिछले दिन कुछ कमजोर रहा।
गुजरात के अलावा देश के प्रमुख रूई उत्पादक राज्यों में महाराष्ट्र, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश एवं तमिलनाडु सम्मिलित हैं जहां परम्परागत किस्मों के साथ-साथ बीटी कॉटन की व्यावसयिक खेती होती है जबकि उड़ीसा में केवल परम्परागत किस्मों की कपास का उत्पादन होता है।
ऐसा प्रतीत होता है कि कपास का भाव एक निश्चित सीमा में लगभग स्थिर हो गया है और निकट भविष्य में इसमें भारतीय उतार-चढ़ाव आना मुश्किल है।
पंजाब में हालत एक बार फिर कमजोर दिखाई पड़ रही है क्योंकि एक तो वहां कपास के बिजाई क्षेत्र में गिरावट आई है और दूसरे, फसल पर पिंक बॉलवर्म कीट का प्रकोप भी बढ़ता जा रहा है।