iGrain India - नई दिल्ली । कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अगस्त माह में भयंकर सूखा पड़ने से खरीफ फसलों और खासकर सोयाबीन, गन्ना, मूंग तथा उड़द की फसल को जो भारी नुकसान हुआ उससे उबरने में चालू माह के शुरूआती कुछ दिनों के दौरान हुई वर्षा ज्यादा कारगर साबित नहीं होगी।
सितम्बर में जुलाई वाली वर्षा की जरूरत है अन्यथा फसलों की उपज दर एवं पैदावार में कमी आने, कीमतों में बढोत्तरी होने तथा खाद्य महंगाई आगे और बढ़ने की आशंका रहेगी।
एक कृषि अर्थशास्त्री का कहना है कि एक माह से अधिक समय तक देश के अधिकांश भाग में वर्षा नहीं या नगण्य हुई जिससे फसलों की उत्पादकता एवं पैदावार में अनिश्चितता बढ़ गई है।
इससे सोयाबीन एवं दलहन फसलों को भारी क्षति होने की आशंका है और गन्ना की फसल को गंभीर खतरा बना हुआ है क्योंकि उसे सिंचाई के लिए अपेक्षाकृत अधिक पानी की जरूऱत पड़ती है। महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात एवं बिहार में बारिश का अभाव रहा है जबकि वहां गन्ना का भारी उत्पादन होता है।
खतरा यही खत्म नहीं होता है। अल नीनो मौसम चक्र का प्रकोप एवं प्रभाव चालू वर्ष के अंत तक बरकरार रहने की संभावना व्यक्त की जा रही है जिससे आगामी रबी फसलों की बिजाई, प्रगति एवं पैदावार प्रभावित होने की आशंका है।
बेशक रबी सीजन में गन्ना, सोयाबीन एवं कपास की खेती नहीं होती है और धान का क्षेत्रफल भी सीमित रहता है मगर गेहूं, जौ, चना, मसूर, एवं मटर एवं सरसों आदि की फसल को भी सिंचाई के लिए पानी की आवश्यकता पड़ती है।
एक विशेलषक का कहना है कि सितम्बर की वर्षा से खासकर महाराष्ट्र एवं कर्नाटक जैसे शीर्ष उत्पादक राज्यों में अरहर (तुवर) की फसल को राहत मिल सकती है क्योंकि यह लम्बी अवधि में पककर तैयार होने वाली फसल है।
पिछले कुछ दिनों के दौरान देश के मध्यवर्ती एवं दक्षिणी भाग में मानसून की सक्रियता से बारिश हुई है जिससे वर्षा की कुल कमी अगस्त के 36 प्रतिशत से घटकर सितम्बर के शुरूआती 10 दिनों में महज 7 प्रतिशत रह गई लेकिन वर्षा का वितरण असमान रहा है जिससे कई क्षेत्रों में फसलों को नुकसान पहुंचना जारी है।