iGrain India - नई दिल्ली । एक तरफ केन्द्र सरकार खाद्य महंगाई तथा दाल-दलहन की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए अनेक एहतियाती कदम उठा रही है जबकि दूसरी ओर हालात इतने विषम हो रहे हैं कि दलहनों का भाव ऊंचा और तेज होता जा रहा है।
खरीफ कालीन दलहन फसलों और खासकर उड़द, तुवर तथा मूंग के बिजाई क्षेत्र में गिरावट आने तथा प्रतिकूल मौसम से फसल को नुकसान होने का मनोवैज्ञानिक असर दाल-दलहन बाजार पर स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है।
ध्यान देने की बात है कि पिछले कुछ सप्ताहों के दौरान न केवल तुवर, उड़द एवं मूंग के दाम में तेजी आई है बल्कि इसकी सहानुभूति में चना और मसूर का भाव भी ऊंचा हो गया है।
सरकार के सख्त एहतियाती उपायों के बावजूद दलहन बाजार में नरमी का माहौल नहीं बनने से स्पष्ट संकेत मिलता है कि घरेलू प्रभाग में इसकी मांग एवं जरूरत तथा आपूर्ति एवं उपलब्धता के बीच अंतर काफी बढ़ गया है। बेशक विदेशों से तुवर, उड़द एवं मसूर का नियमित रूप से आयात हो रहा है लेकिन बाजार इससे प्रभावित नहीं दिख रहा है।
कृषि मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले साल के मुकाबले चालू खरीफ सीजन के दौरान अरहर (तुवर) का उत्पादन क्षेत्र 45.61 लाख हेक्टेयर से घटकर 42.92 लाख हेक्टेयर, उड़द का बिजाई क्षेत्र 37.07 लाख हेक्टेयर से लुढ़ककर 31.89 लाख हेक्टेयर तथा मूंग का क्षेत्रफल 33.66 लाख हेक्टेयर से गिरकर 31.11 लाख हेक्टेयर रह गया।
इस तरह उड़द के रकबे में 5.18 लाख हेक्टेयर, तुवर में 2.69 लाख हेक्टेयर, मूंग में 2.55 लाख हेक्टेयर एवं खरीफ कालीन दलहन फसलों के कुल क्षेत्रफल में 11.26 लाख हेक्टेयर की भारी गिरावट आ गई। दलहनों का कुल उत्पादन क्षेत्र 131.17 लाख हेक्टेयर से घटकर 119.91 लाख हेक्टेयर पर अटक गया।
मूंग और उड़द की फसल सामान्य अवधि की होती है इसलिए उसे सिंचाई के लिए नियमित अंतराल पर बारिश की जरूरत पड़ती है। कई उत्पादक क्षेत्रों में 30-35 दिनों तक वर्षा नहीं हुई जबकि तापमान काफी ऊंचा रहा। इससे इन दोनों दलहन फसलों को नुकसान हुआ है।
तुवर की फसल लम्बी अवधि की होती है इसलिए उसे सितम्बर की बारिश से फायदा हो सकता है। राजस्थान के मूंग उत्पादक किसान कुछ ज्यादा ही परेशान हैं।