iGrain India - नई दिल्ली । भारत पिछले कई वर्षों से कनाडाई मसूर का सबसे बड़ा खरीदार बना हुआ है और कनाडा दुनिया में इसका सबसे प्रमुख उत्पादक एवं निर्यातक देश है। लेकिन खालिस्तान के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच काफी तनाव उत्पन्न हो गया है।
दोनों देशों ने एक-दूसरे एक-एक राजनायिक को स्वदेश भेज दिया है। आग में घी डालते हुए कनाडा ने अपने नागरिकों को जम्मू कश्मीर, पूर्वोत्तर क्षेत्र एवं आसाम आदि नहीं जाने की एडवायजरी जारी की है।
इस तरह कनाडा भारत के इन प्रांतों को खतरनाक साबित करने का प्रयास कर रहा है। कनाडाई प्रधानमंत्री के कुछ बयान भी बेतुके आ रहे हैं। इससे दोनों देशों के बीच संबंधों में दरार उत्पन्न होने की आशंका बढ़ती जा रही है।
ऐसा लगता है कि कनाडा की इन हरकतों से भारत के साथ अल्पकाल एवं मध्य काल की अवधि में व्यापार तथा निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगभग समान चल रहा है।
व्यापार विश्लेषकों के मुताबिक यदि कनाडा से मसूर का आयात प्रभावित होता है तो घरेलू प्रभाग में त्यौहारी सीजन के दौरान दाल-दलहनों की कीमतों में कुछ और तेजी आ सकती है जबकि पहले से ही उसका स्तर काफी ऊंचा है।
खरीफ कालीन दलहन फसलों का रकबा घट गया है और मौसम तथा मानसून की हालत भी इसके लिए पूरी तरह अनुकूल नहीं है। गत वर्ष की तुलना में उड़द तथा तुवर के उत्पादन क्षेत्र क्रमश: 2.2 प्रतिशत एवं 5.6 प्रतिशत की गिरावट आई है जबकि दलहनों का कुल क्षेत्रफल 5.2 प्रतिशत घट गया है। इससे उत्पादन में कमी आने की संभावना है।
हालांकि अभी तक मामला पूरी तरह बिगड़ा नहीं है लेकिन जिस तरह कनाडा सरकार खलिस्तान समर्थन के दबाव में आकर कार्रवाई कर रही है वह शुभ संकेत नहीं है।
भारत में करीब 21 प्रतिशत दलहन का आयात कनाडा से होता है इसलिए इसके रुकने पर कुछ असर तो जरूर पड़ेगा लेकिन ऑस्ट्रेलिया के रूप में भारत के पास एक बेहतर विकल्प मौजूद है और अमरीकी मसूर का आयात भी बढ़ सकता है क्योंकि इस पर सीमा शुल्क समाप्त कर दिया गया है। अगले महीने से देश में मसूर की बिजाई भी शुरू होने वाली है।