iGrain India - नई दिल्ली। भारतीय मक्के का भाव ऊंचा होने तथा पाकिस्तान से प्रतिस्पर्धी बढ़ने के कारण निर्यात कारोबार तो लगभग ठप्प पड़ गया है लेकिन घरेलू प्रभाग में एथनॉल एवं पशु आहार (फीड) निर्माण उद्योग में इसकी मांग काफी मजबूत बनी हुई है।
हालांकि पाकिस्तान के मक्के की क्वालिटी अच्छी नहीं है और शिपमेंट में भी कुछ बाधाएं हैं लेकिन फिर भी कुछ एशियाई देश वहां से मक्का मंगाने का जोखिम उठाना चाहते हैं क्योंकि उसका भाव भारतीय मक्के से काफी नीचे है और उसकी मुद्रा भी अत्यन्त कमजोर है।
जिन भारतीय निर्यातकों के पुराने सौदे अभी तक नहीं निपटे हैं केवल वही मक्का का निर्यात कर रहे हैं। नए अनुबंध नहीं या नगण्य हो रहे हैं जबकि अधिकांश निर्यातक अपने पुराने सौदों को पहले ही निपटा चुके हैं।
सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से गेहूं और चावल के स्थान पर मक्के का वितरण करना भी शुरू कर दिया है जिससे मंडियों में आपूर्ति कम होने लगी है। अब खरीफ कालीन मक्के की नई फसल जल्दी ही तैयार होकर आने वाली है।
अब खरीफ कालीन मक्के की नई फसल जल्दी ही तैयार होकर आने वाली है। लेकिन व्यापार विश्लेषकों का कहना है कि मानसून की कमजोरी के कारण मक्का का उत्पादन घट सकता है।
बिहार, उत्तरी कर्नाटक एवं महाराष्ट्र में मक्का की खेती मुख्यत: वर्षा पर आश्रित क्षेत्रों में होती है। इस बार इन इलाकों में बारिश कम हुई है जबकि तापमान काफी ऊंचा रहा।
अगस्त में 36 प्रतिशत कम वर्षा होने से भी मक्का की फसल प्रभावित हुई थी। महाराष्ट्र में मक्का के पौधे का ठीक से विकास नहीं होने तथा पौधों में बालियां (भुट्टा) कम लगने की सूचना मिल रही है।