iGrain India - नई दिल्ली। नई फसल की आवक शुरू होने तथा सरकारी खरीद नहीं होने से पिछले सप्ताह मूंगफली तथा इसके तेल एवं सोयाबीन के घरेलू बाजार भाव में भारी गिरावट दर्ज की गई लेकिन बेहतर त्यौहारी मांग के कारण अन्य खाद्य तेलों की कीमतों में सुधार दर्ज किया गया।
व्यापार विश्लेषकों के अनुसार प्रमुख उत्पादक राज्यों की मंडियों में खरीफ कालीन मूंगफली तथा सोयाबीन की नई फसल की आपूर्ति बढ़ने लगी है जबकि विदेशों से विशाल मात्रा में आयातित सस्ते खाद्य तेल का दबाव भी पड़ रहा है।
समझा जाता है कि मूंगफली एवं इसके तेल का भाव अपेक्षाकृत ऊंचा चल रहा था इसलिए इसकी मांग कुछ कमजोर पड़ गई। जहां तक सोयाबीन का सवाल है तो इसका दाम घटकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे आ गया है।
छोटे-छोटे किसान इस कमजोर मूल्य पर अपना उत्पाद बेचने के लिए विवश हो रहे है जबकि बड़े-बड़े उत्पादकों ने अपना स्टॉक रोकना शुरू कर दिया है।
लेकिन सोयाबीन के मुकाबले सोया तेल की कीमतों में नरमी के बजाए कुछ सुधार दर्ज किया गया क्योंकि कांडला बंदरगाह पर विदेशों के आयातित क्रूड डिगम्ड सोयाबीन तेल का भाव 960-970 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 980-990 डॉलर प्रति टन पर पहुंचने से घरेलू बाजार पर इसका सकारात्मक असर पड़ा। उधर सोयाबीन का भाव नीचे लुढ़कने से किसानों की चिंता एवं परेशानी बढ़ती जा रही है।
पिछले दिनों केन्द्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा था कि किसानों से 100 प्रतिशत दलहन-तिलहन की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर की जाएगी लेकिन जब तक इसकी प्रक्रिया शुरू नहीं होती तब तक किसानों को नुकसान होता रहेगा।
उल्लेखनीय है कि सोपा के चेयरमैन पहले ही आगाह कर चुके है कि सोयाबीन उत्पादकों को लाभप्रद मूल्य अवश्य मिलना चाहिए अन्यथा वे इसकी खेती से भविष्य में हतोत्साहित हो सकते हैं।
विश्लेषकों के अनुसार अच्छी क्वालिटी की सरसों का स्टॉक सीमित है जबकि नमी युक्त माल की आवक अधिक हो रही है जिसे रिफाइंड तेल के निर्माण के लिए उपयुक्त माना जाता है।
ध्यान देने वाली बात है कि त्यौहारी सीजन में ब्रांडेड तेल कंपनियां अच्छी क्वालिटी की सरसों की तलाश में रहती है। नैफेड के पास सरसों का अच्छा खासा स्टॉक अभी मौजूद है जिसका इस्तेमाल सही समय पर किया जाना चाहिए। इसकी कीमतों में कुछ तेजी-मजबूती देखी जा रही है।
गत सप्ताह शिकागो एक्सचेंज में सोयाबीन तेल एवं कुआलालम्पुर (मलेशिया) एक्सचेंज में क्रूड पाम तेल का वायदा भाव कुछ सुधर गया। घरेलू बाजार पर इसका सकारात्मक असर पड़ा। इसी तरह बिनौला (कॉटन सीड) तेल में नमकीन निर्माताओं की अच्छी मांग से कीमतों में कुछ सुधार आया।