बीजिंग, 14 जुलाई (आईएएनएस)। चीन को पछाड़कर दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बने भारत को जनसंख्या बढ़ोतरी दर में कमी आने में अभी कम से कम चालीस साल का वक्त है। अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान के निदेशक केएस जेम्स का कहना है कि जिस तरह जनसंख्या दर स्थिर हुई है, वैसी स्थिति भारत में आने के लिए साल 2060 से 2070 के दशक तक इंतजार करना होगा। जेम्स का मानना है कि इसमें कमी साल 2063 के बाद आने लगेगी। तब तक एक दंपत्ति को अधिकतम दो बच्चे होंगे। हालांकि, भारत के शहरी इलाकों में एक पीढ़ी ऐसी भी हो गई है, जो अकेले रहने या शादी करने के बाद भी बच्चे ना पैदा करने का उद्देश्य लेकर चल रहे हैं। जानकारों का मानना है कि आने वाले दिनों में इस चलन में और बढ़ोतरी हो सकती है। इसकी वजह सांस्कृतिक मूल्यों में आ रहे बदलाव और आर्थिक संसाधनों को लेकर बढ़ता तनाव है।
साल 2022 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने जनसंख्या की दर को लेकर एक रिपोर्ट जारी की थी। जिसके मुताबिक, साल 2050 तक भारत की आबादी 167 करोड़ से ज्यादा होगी। इसी आंकड़े के मुताबिक, साल 2063 तक यह 169 करोड़ 69 लाख से ज्यादा हो जाएगी। साल 2064 में यह घटने लगेगी और यह 169 करोड़ 64 लाख के करीब होगी। इसके बाद इसमें तेज गिरावट होने का अनुमान है।
जानकारों के मुताबिक साल 2100 तक भारत की जनसंख्या में बड़ी गिरावट दिखेगी, जो करीब 152 करोड़ होगी। अभी भारत की जनसंख्या करीब 142 करोड़ है। अनुमानों के मुताबिक साल 2100 में जनसंख्या आज की जनसंख्या से महज 10 करोड़ ज्यादा होगी। जानकारों के मुताबिक देश में आबादी की उम्र दर बढ़ती जाएगी। जिससे भारत की कार्यशील जनसंख्या बढ़ेगी।
माना जा रहा है कि भारत की बढ़ती आबादी के फायदे भी हैं। बढ़ती जनसंख्या और शिक्षा की वजह से पिछले कुछ सालों में भारत की कार्यशील जनसंख्या में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। इस बारे में पीरियॉडिक लेबर फोर्स के सर्वेक्षण की रिपोर्ट पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। जिसके अनुसार, भारत की कुल कार्यशील जनसंख्या में महिलाओं का अनुपात जहां 2019-20 में 28.7 प्रतिशत था, वहीं साल 2020-21 में बढ़कर 31.4 प्रतिशत और साल 2021-22 में 31.7 प्रतिशत हो गया।
जानकारों का मानना है कि कार्यशील जनसंख्या में भारत में महिलाओं की बढ़ती हिस्सेदारी का फायदा चीन की तरह भारत की आर्थिकी को भी मिलना संभव है। इसी साल जनवरी में संयुक्त राष्ट्रसंघ की एक रिपोर्ट चीन के संबंध में आई थी। जिसके मुताबिक, चीन के साठ साल के इतिहास में पहली बार जनसंख्या में गिरावट हुई। इस रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2022 तक भारत की आबादी एक अरब 41 करोड़ 70 लाख थी, जबकि चीन की आबादी एक अरब 41 करोड़ 26 लाख थी। यानी भारत से कम। इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2050 तक चीन की जनसंख्या में एक अरब तीस करोड़ तक गिरावट हो सकती है।
ऐसा माना जा रहा है कि इस गिरावट से चीन को कार्यशील जनसंख्या की कमी होने जा रही है। इसलिए चीन ने एक बच्चा नीति में संशोधन किया है। यह सच है कि एक सीमा से ज्यादा जनसंख्या जहां किसी देश के लिए चुनौतियों का सबब होती है, वहीं यही जनसंख्या कार्यशील पूंजी बनती है। चीन ने इसे साबित करके दिखाया है। जानकारों के अनुसार आबादी किसी भी देश की आर्थिक उत्पादकता और तरक्की बढ़ाने में सहायक होती है।
चीन को आर्थिक महाशक्ति बनाने में आबादी की जैसी भूमिका रही, ठीक उसी तरह अगर भारत पिछले कई सालों से दुनिया की तेज गति से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था वाला देश बना हुआ है, उसकी वजह उसकी जनसंख्या का मानव संसाधन में तब्दील होना है।
वैश्विक फर्म मॉर्गन स्टेनली के अनुसार भारत ने पिछले एक दशक में साढ़े पांच प्रतिशत की दर से विकास किया है। विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर भारत और चीन की जनसंख्या को इसी नजरिए से देखा जाना चाहिए।
(वरिष्ठ भारतीय पत्रकार---उमेश चतुर्वेदी)
--आईएएनएस