नई दिल्ली, 25 नवंबर (आईएएनएस)। अदाणी फाउंडेशन की अध्यक्ष प्रीति अदाणी ने सोमवार को परफॉर्मिंग आर्ट को देश में समावेशन के लिए सबसे बेहतर माध्यम बताते हुए कहा कि कला और संस्कृति के बारे में जितना कहा जाए कम है। उन्होंने कहा कि यास्मीन सिंह इस बात का एहसास दिलाती हैं कि ज्ञान की तलाश और कला का अभ्यास एक-दूसरे से अलग नहीं है, ये एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।राष्ट्रीय राजधानी के कंस्टीट्यूशन क्लब में कथक नृत्यांगना यास्मीन सिंह की दो पुस्तकों के विमोचन के मौके पर प्रीति अदाणी ने कहा, "सामाजिक विकास के क्षेत्र में तीन दशकों से ज्यादा के अपने अनुभव के आधार पर मैं वास्तव में मानती हूं कि कला और संस्कृति के महत्व के बारे में जितना कहा जाए, कम है। मजबूत और समावेशी समाज के निर्माण के लिए रचनात्मकता और सांस्कृतिक उद्भावना को समर्थन देना अनिवार्य है।"
उन्होंने कहा, "परफॉर्मिंग आर्ट या किसी भी तरह की कला के लिए जाति, नस्ल या रंग की कोई सीमा नहीं है। इसलिए "हमारे देश में समावेशन के लिए यह सर्वोत्तम माध्यम है"।"
उन्होंने कहा कि हमें हमेशा इसे जीवित और जीवंत रखने के लिए प्रयास करना चाहिए। हमारे अंदर के संघर्ष, आकांक्षाओं और खुशी की अभिव्यक्ति के लिए नृत्य, संगीत, साहित्य या किसी भी नये और बेहतर तरीके का इस्तेमाल करना चाहिए।
उन्होंने कहा, "मेरे लिए यह गर्व की बात है कि अदाणी परिवार का एक सदस्य इस क्षेत्र में अपना योगदान दे रहा है।" उन्होंने कहा कि लेखिका की प्रतिबद्धता देश की महान कला परंपरा को संरक्षित करने की अदाणी परिवार की ड्राइव के अनुरूप है।
यास्मीन सिंह की दोनों किताबें रायगढ़ घराने की कथक परंपरा के बारे में हैं, जिसके बारे में अब लोग भूलते जा रहे हैं। एक पुस्तक का शीर्षक है "कथक नृत्य प्रणेता और संरक्षक : राजा चक्रधर सिंह"। दूसरी पुस्तक "रायगढ़ घराने की कथक रचनाओं का सौंदर्य बोध" है।
यास्मीन सिंह की तारीफ करते हुए प्रीति अदाणी ने कहा कि कथक की विरासत काफी समृद्ध है और उतनी ही समृद्ध है, इसके बारे में लेखन की विरासत। लेकिन, शायद ही कभी होता है कि एक कथक नर्तक ही लेखिका भी है। उन्होंने कहा कि यास्मीन सिंह के परफॉर्मेंस में न सिर्फ कथक का कालातीत श्री और सौंदर्य झलकता है, बल्कि उनके पास इसके उद्भव और परंपराओं के बारे में विद्वतापूर्ण पकड़ भी है।
उन्होंने कहा कि परफॉर्मिंग आर्ट्स के ज्यादातर प्रशंसकों के लिए कथक की पहचान सिर्फ तीन ही घरानों से है - जयपुर घराना, लखनऊ घराना और बनारस घराना। रायगढ़ घराना कहीं खो गया है। यह न सिर्फ हमारी चर्चाओं से गायब हो गया है, बल्कि यह पब्लिक इंफॉर्मेशन सिस्टम से भी नदारद हो गया है। उदाहरण पेश करते हुए उन्होंने कहा कि कथक पर विकिपीडिया के हिंदी सेक्शन में तो रायगढ़ घराने का जिक्र है, लेकिन अंग्रेजी सेक्शन में इसका नाम नहीं है। इस भेदभाव को मिटाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, "यास्मीन जी जैसे विद्वानों के प्रतिबद्ध प्रयासों के परिणाम स्वरूप आज कथक की महान परंपरा के रूप में रायगढ़ घराने को भी पहचान मिली है।"
प्रीति अदाणी ने कहा कि लय और कोरियोग्राफी में रायगढ़ घराने का नवाचार 20वीं सदी की शुरुआत में राजा चक्रधर सिंह के शासनकाल में विकसित हुआ, जिस पर दोनों पुस्तकों में विस्तार से लिखा गया है और बताया गया है कि कैसे यह समृद्ध परंपरा दुनिया में अपनी जगह नहीं बना पा रही है।
उन्होंने लेखिका की तारीफ करते हुए कहा, "मैं यह जानकर आश्चर्यचकित हूं कि कला के प्रति आपके समर्पण के साथ ही आप एक प्रशासक और सामाजिक कार्यकर्ता की भूमिका को भी बखूबी निभा रही हैं। कथक में आपकी पीएचडी की डिग्री और इतिहास, नृत्य तथा समाज सेवा में आपकी तीन एमए. की डिग्री, इतिहास में एमफिल. और बीएड. की डिग्री आपको सभी महत्वाकांक्षी लड़कियों और महिलाओं के लिए आदर्श के रूप में स्थापित करती है।"
--आईएएनएस
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