कोलकाता, 15 जुलाई (आईएएनएस)। पश्चिम बंगाल में हाल ही में पंचायत चुनाव संपन्न हुए हैं। इस चुनाव में माकपा के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे के खराब प्रदर्शन ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या कम्युनिस्ट ताकतें, जिन्होंने 1977 से 2011 तक 34 साल राज्य पर शासन किया था, वे अब बेअसर होता जा रही हैं ? जैसा कि परिणाम दिखाते हैं, वाम मोर्चा पंचायत सिस्टम के तीन स्तरों में से किसी में भी दूसरा स्थान सुरक्षित नहीं कर पाया है। यह केवल ग्राम पंचायत के निचले स्तर पर तीसरे स्थान पर रहा, जबकि पंचायत समिति और जिला परिषद के शेष दो स्तरों में वाम मोर्चा, कांग्रेस और अखिल भारतीय धर्मनिरपेक्ष मोर्चा (एआईएसएफ) के बीच अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद यह कांग्रेस के बाद चौथे स्थान पर रहा।
हालांकि, आशावादी माकपा नेतृत्व को 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में वाम मोर्चा-कांग्रेस-एआईएसएफ गठबंधन के वोट शेयर में सुधार से उम्मीद की किरण मिली है। 2023 के ग्रामीण निकाय चुनावों में, तिकड़ी का वोट प्रतिशत 2021 के 10 प्रतिशत से दोगुना से अधिक 21 प्रतिशत हो गया है। आनुपातिक रूप से भाजपा जीती गई सीटों की संख्या के मामले में पंचायत प्रणालियों के सभी तीन स्तरों में दूसरे स्थान पर उभरने के बावजूद, उसके वोट प्रतिशत हिस्सेदारी में भारी गिरावट देखी गई है।
2023 के निकाय चुनावों में भाजपा का वोट शेयर 2021 में 38 प्रतिशत से घटकर 22 प्रतिशत हो गया है। माकपा नेतृत्व ने भी आंकड़े जारी किए हैं कि 2021 के विधानसभा चुनावों के बाद से पांच नगर निगमों, 86 नगर पालिकाओं, एक लोकसभा और तीन विधानसभा क्षेत्रों के लिए उप-चुनावों में कांग्रेस-वाम मोर्चा-एआईएसएफ गठबंधन का वोट प्रतिशत कैसे बढ़ा है।
माकपा नेतृत्व ने ग्रामीण नागरिक निकाय चुनावों के नतीजे घोषित होने के तुरंत बाद जारी एक बयान में कहा, ''सत्तारूढ़ दल द्वारा बड़े पैमाने पर हिंसा, बूथ कैप्चरिंग और पंचायत चुनावों में उनके द्वारा दायर किए गए फर्जी नामांकन के बावजूद, वाम मोर्चा और उसके सहयोगी दलों के लिए वोट प्रतिशत में वृद्धि राज्य में प्रमुख विपक्ष साबित हुए हैं।"
हालांकि, राजनीतिक पर्यवेक्षकों के मुताबिक माकपा नेतृत्व द्वारा प्रस्तुत वोट शेयर में वृद्धि के आंकड़ों में कुछ बाजीगरी मिली है। वाम मोर्चा-कांग्रेस-एआईएसएफ गठबंधन के संयुक्त वोट शेयर प्रतिशत से, यह स्पष्ट नहीं है कि वाम मोर्चे के लिए व्यक्तिगत वोट प्रतिशत में कितनी वृद्धि हुई है। बल्कि, पंचायत व्यवस्था के तीन स्तरों में जीती गई सीटों की संख्या से तो यही लगता है कि इस गठबंधन व्यवस्था में कांग्रेस को सबसे ज्यादा फायदा हुआ है। यह तब है जब कांग्रेस समझौते के तहत कम सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
यह लगभग तय है कि कांग्रेस और वाम मोर्चा 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए चुनाव पूर्व गठबंधन और सीट बंटवारे पर समझौता करेंगे। लेकिन, राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि पूरी संभावना है कि कांग्रेस को अगले साल भी वाम मोर्चे से अधिक लाभ होगा।
--आईएएनएस
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