iGrain India - मुम्बई । रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) की एक रिसर्च में कहा गया है कि खाद्य उत्पादों के बढ़ते दाम से कुल महंगाई का ग्राफ ऊंचा रहने की संभावना है। यह विवादास्पद मुद्दा अपनी जगह कायम है कि शीर्ष महंगाई में बढ़ोत्तरी को नियंत्रित करने हेतु मौद्रिक नीति का हस्तक्षेप होना आवश्यक है क्योंकि महंगाई की जड़ में खाद्य पदार्थों का ऊंचा दाम घटा हुआ है।
इसमें कई करणों से इजाफा हुआ है जिसे महज ब्याज दरों में बदलाव के जरिए नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। खपत बाजार में खाद्य उत्पादों की भागीदारी बहुत अधिक है इसलिए जब इसके दाम में इजाफा होता है तो कुल महंगाई भी स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है। उसका असर गैर खाद्य उत्पादों पर भी पड़ता है।
इसमें कोई संदेह नहीं है पिछले एक-डेढ़ साल से चावल, गेहूं एवं चीनी तथा दाल- दलहन जैसे मूलभूत एवं दैनिक उपयोग के आवश्यक खाद्य उत्पादों का भाव काफी ऊंचे स्तर पर बना हुआ है जिससे आम उपभोक्ताओं की कठिनाई बढ़ गई है।
हैरानी की बात है कि सरकार का उत्पादन अनुमान काफी ऊंचा रहा है और उसके बाजार भाव को नियंत्रित करने का हर संबद्व प्रयास भी किया है लेकिन कीमतों पर इसका कोई सार्थक असर पड़ता नहीं दिख रहा है।
आपूर्ति पक्ष कमजोर और मांग पक्ष मजबूत है जो महंगाई का असली कारण माना जा रहा है। इसके पीछे-पीछे अन्य खाद्य उत्पादों का दाम भी तेज हुआ है। अक्सर प्याज, टमाटर एवं आलू तथा सब्जियों एवं फलों के दाम में जबरदस्त तेजी आ जाती है तो कुल खाद्य महंगाई को बढ़ा देती है।
केन्द्र सरकार ने टुकड़ी चावल, और बासमती सफेद चावल, गेहूं तथा इसके उत्पाद और चीनी के निर्यात पर प्रतिबद्ध लगा रखा है मगर इससे कीमतों में नरमी नहीं आई है।
इसके अलावा विदेशों से दलहनों एवं खाद्य तेलों के आयात को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जा रहा है। आम आदमी को मुफ्त में चावल-गेहूं दिया जा रहा है। सस्ते दाम पर चना दाल एवं आटा की बिक्री की जा रही है लेकिन फिर भी खाद्य महंगाई बरकरार है।