कोलकाता, 7 अप्रैल (आईएएनएस)। पश्चिम बंगाल सरकार राज्य को एक आदर्श निवेश स्थल के रूप में पेश करने के लिये 20- 21 अप्रैल को बंगाल वैश्विक कारोबार सम्मेलन, 2022 आयोजित करने की तैयारी में पूरी तरह जुटी हुई है।राज्य में इस साल यह आयोजन ऐसे समय में हो रहा है, जब यह बोगटुई में हुई आगजनी, पार्षद की दिनदहाड़े हत्या और पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग (डब्ल्यूबीएसएससी) घोटाले जैसी खबरों के कारण मीडिया में छाया हुआ है।
ऐसी स्थिति में यह सवाल खड़ा होता है कि इस तरह की अस्थिर पूष्ठभूमि में आयोजित निवेश सम्मेलन किस हद तक निवेशकों को आकर्षित कर पायेगा।
आईएएनएस ने इस मुद्दे पर शहर के कुछ आर्थिक और उद्योग विश्लेषकों से बात की। उनमें से लगभग सभी का मत था कि छवि में आमूलचूल परिवर्तन के बिना और निवेश के लिहाज से सरल नीतियों के अभाव में ऐसे सम्मेलन निवेश प्रतिबद्धता को तो आकर्षित कर सकते हैं लेकिन इनसे वास्तविक निवेश नहीं आयेगा।
पहले आईएएनएस ने इस मामले पर राज्य कैबिनेट के कुछ सदस्यों और सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की लेकिन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के सेंसरशिप की आशंका से इस मामले पर कोई आधिकारिक टिप्पणी करने को तैयार नहीं था।
हालांकि, मंत्रिमंडल के एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि इतने बड़े व्यापार सम्मेलन से पहले मीडिया में गलत कारणों से राज्य का सुर्खियों में रहना अवांछनीय है। उन्होंने कहा, कोई भी सरकार नहीं चाहती कि राज्य को कभी भी खराब तरीके से पेश किया जाये। हमारी सरकार भी ऐसा नहीं चाहती। हमारी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का ध्यान अभी उद्योगों के विकास पर है।
उन्होंने कहा ,हालांकि, दुर्भाग्य से कुछ हालिया घटनाओं को विपक्षी राजनीतिक ताकतों और मीडिया के एक वर्ग द्वारा बढ़ाचढ़ा कर पेश किया गया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। हालांकि, मुझे विश्वास है कि शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिये आने वाले व्यापारिक प्रतिनिधि राज्य के विकास के संबंध में मुख्यमंत्री की प्रतिबद्धता से अवगत हैं और वे नकारात्मक प्रचार से प्रभावित नहीं होंगे।
वित्तीय विश्लेषक नीलांजन डे ने आईएएनएस से कहा कि नकारात्मक घटनायें निवेशकों का मूड खराब नहीं कर सकती हैं, अगर संबंधित राज्य सरकार निवेशकों को स्पष्ट संदेश दे कि परियोजना के शांतिपूर्ण कार्यान्वयन में इस तरह के नकारात्मक उदाहरण बाधा नहीं बनेंगे।
उन्होंने कहा,अब यह देखा जाना है कि राज्य सरकार कारोबारी प्रतिनिधियों को इस मुद्दे पर क्या कहती है। दूसरा पहलू निवेशकों का विश्वास हासिल करने के लिये सही नीति बनाना है।
उन्होंने राज्य सरकार की भूमि नीतियों के कारण विनिर्माण क्षेत्र में भारी उद्योग की स्थापना की संभावना पर संदेह जताया। उन्होंने कहा कि तृणमूल सरकार भूमि नीति से पीछे भी नहीं से हट सकती है क्योंकि उद्योगों के लिये सरकारी भूमि अधिग्रहण के खिलाफ उनका आंदोलन ही उन्हें सत्ता में ला सका है।
डे ने कहा कि राज्य में सेवा क्षेत्र के लिये अपार संभावनायें हैं, खासकर आईटी और आईटीईएस क्षेत्रों के लिये। इसके लिये सरकार को लेकिन एक विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) नीति बनाने की जरूरत है और यह उम्मीद है कि मुख्यमंत्री आगामी शिखर सम्मेलन में इसकी घोषणा करेंगी।
आर्थिक विश्लेषक और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के वित्तीय स्तंभकार कुणाल बोस और एक बहुराष्ट्रीय एफएमसीजी उत्पाद कंपनी के उपाध्यक्ष सुजय बसु भी डे के विचारों से कुछ हद तक सहमत हैं।
सुजय बासु ने कहा,राज्य में निवेश आकर्षित करने की इच्छा ही निवेश को आकर्षित करने के लिये पर्याप्त नहीं है। एक स्थिर और शांतिपूर्ण कानून व्यवस्था की स्थिति नये निवेश को आकर्षित करने में राज्य के लिये लाभदायक होती है। दुर्भाग्य से, पश्चिम बंगाल की छवि हमेशा से देश के समक्ष नकारात्मक रही है और इसके लिये वर्तमान राज्य सरकार या राज्य की सत्तारुढ़ पार्टी को अकेले दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। मुझे लगता है कि राज्य को पूरी तरह से छवि बदलाव की जरूरत है और राज्य सरकार तथा मुख्यमंत्री का पहला काम यह सुनिश्चित करना है कि यह बदलाव आपातकालीन आधार पर हो। मेरी इच्छा है कि छवि बदलाव की प्रक्रिया इस साल व्यापार शिखर सम्मेलन से शुरू हो।
कुणाल बोस ने आईएएनएस को बताया कि अपने विशाल भौगोलिक क्षेत्र के बावजूद राज्य नये निवेश आकर्षित करने में पिछड़ रहा है क्योंकि नकारात्मक कारणों से यह बार-बार सुर्खियों में आता है।
उन्होंने कहा, नये निवेश को आकर्षित करना अत्यधिक प्रतिस्पर्धी है। संभावित निवेशक हमेशा निवेश निर्णय लेने से पहले राजनीतिक स्थिरता और कानून व्यवस्था की स्थिति जैसे कारकों को देखते हैं। पहले भी कोलकाता में कई व्यापारिक शिखर सम्मेलन हुये हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या उन शिखर सम्मेलनों से वास्तविक निवेश प्राप्त हुआ है ।
--आईएएनएस
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