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फसलों का उत्पादन आंकड़ा सटीक और वास्तविक होना जरुरी

प्रकाशित 06/09/2023, 04:55 pm
अपडेटेड 06/09/2023, 05:15 pm
फसलों का उत्पादन आंकड़ा सटीक और वास्तविक होना जरुरी
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iGrain India - नई दिल्ली । पिछले कम से कम तीन सीजन से देखा जा रहा है कि सरकार चावल, गेहूं एवं दलहन का उत्पादन आंकड़ा काफी बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत कर रही है जिससे बाजार की वास्तविकता का ताना-बाना टूट जाता है।

न तो मंडियों में सरकारी उत्पादन अनुमान कृषि उत्पादों की आवक होती है और न ही कीमतों में स्थिरता रहती है। और तो और, सरकारी खरीद भी नियत लक्ष्य से काफी पीछे रह जाती है।

इतना तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि यदि चावल, गेहूं एवं दलहन के उत्पादन का सरकारी आंकड़ा सही, सटीक  और वास्तविक होता तो देश को इसके अभाव का सामना नहीं करना पड़ता और न ही इसके दाम में ज्यादा तेजी का माहौल बनता है।

घरेलू प्रभाग में खाद्य उत्पादों की आपूर्ति एवं उपलब्धता बढ़ाने तथा कीमतों को नियंत्रित करने में सरकार को पर्याप्त सफलता नहीं मिलने का एक प्रमुख कारण उत्पादन आंकड़े का सही नहीं होना है जबकि सरकार को लगता है कि उद्योग-व्यापार क्षेत्र द्वारा स्टॉक को दबाया और रोका जा रहा है।

इसी धारणा के आधार पर तरह-तरह के नियंत्रण एवं प्रतिबंध लगाने की कोशिश की जाती है मगर वास्तविक हालात से दूर इन प्रतिगामी उपायों का सार्थक परिणाम सामने नहीं आता है।

उदाहरणस्वरूप गेहूं का मामला देखना दिलचस्प होगा। गेहूं तथा इसके उत्पादों के निर्यात पर पिछले साल से ही प्रतिबंध लगा हुआ है जबकि चालू वर्ष के दौरान इस पर भंडारण सीमा भी लगा दी गई।

कृषि मंत्रालय ने गेहूं का उत्पादन 2022-23 के रबी सीजन में उछलकर 1127 लाख टन के सर्वकालीन सर्वोच्च स्तर पर पहुंचने का अनुमान लगाया है जिसके आधार पर खाद्य मंत्रालय ने 342 लाख टन की खरीद का लक्ष्य निर्धारित कर दिया मगर वास्तविक  खरीद 262 लाख टन तक ही पहुंच सकी और उसमें भी बड़ी मात्रा उस समय की रही जिसकी क्वालिटी खराब हो गई थी और जिसे गुणवत्ता राहत नियत के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम पर खरीदा गया।

सरकारी खरीद अपेक्षित स्तर तक नहीं पहुंचने से खुली मंडियों में गेहूं की आवक बढ़नी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि वास्तव में गेहूं का उत्पादन ही सरकारी अनुमान से काफी पीछे रह गया।

चावल और दलहन का मामला भी इससे ज्यादा भिन्न नहीं है इसलिए सरकार को इसकी आपूर्ति एवं उपलब्धता बढ़ाने तथा बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए भारी मशक्क्त करनी पड़ रही है।

यदि पहले से ही इसका उत्पादन आंकड़ा छोटा करके व्यावहारिक स्तर पर लाया जाता तो खाद्य मंत्रालय को अपनी रणनीति बनाने में सहायता मिलती।                          

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