नई दिल्ली, 24 नवंबर (आईएएनएस)। एक नए अध्ययन के अनुसार भूकंप की सभी प्रक्रियाएं आयन मंडल में अपना प्रभाव छोड़ती हैं। यह खोज अंतरिक्ष से भूकंप स्रोत प्रक्रियाओं का अवलोकन करने में सहायता कर सकती है, जो अंतरिक्ष-आधारित अवलोकनों का उपयोग करके भूकंप के पूर्वसंकेतों (प्रीकर्सर्स) को समझने का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसार ब्रह्मांडीय ऊर्ध्वाधर क्रस्टल हलचलें वायुमंडल में ध्वनिक तरंगों को उत्तेजित करती हैं। यह तरंगें ऊपर की ओर फैलकर आयनमंडल तक पहुंचती हैं, जिससे पृथ्वी की सतह पर स्थित वैश्विक संचार उपग्रह प्रणालियों (ग्राउंड ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम -जीएनएसएस) के ग्राही उपकरण (रिसीवर) और उपग्रहों को जोड़ने वाली अदृश्य रेखाओं (लाइन-ऑफ-साइट) के साथ इलेक्ट्रॉनों की संख्या में गड़बड़ी पैदा होती है।
इन विक्षोभों को कोसेस्मिक आयनोस्फेरिक पर्टर्बेशन (सीआईपी) कहा जाता है। ऐसा निकट-क्षेत्र वाला सीआईपी सामान्यत: स्रोत के 500-600 किमी के भीतर होता है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ जिओमैग्नेटिज्म के वैज्ञानिकों ने अपेक्षाकृत छोटे भूकंपों के लिए इस धारणा को सत्यापित करने के अपने प्रयास में, 2023 फरवरी को तुर्किये में आए भूकंप के निकट-क्षेत्र वाले सीआईपी का विश्लेषण किया।
उन्होंने पहली बार यह प्रदर्शित किया कि अपेक्षाकृत छोटे भूकंपों से उत्पन्न आयनोस्फेरिक गड़बड़ी में गलती के साथ कई स्रोतों का योगदान भी हो सकता है। 6 फरवरी 2023 को, तुर्किए-सीरिया सीमा के पास दक्षिणी तुर्किए में एमडब्ल्यू 7.8 (ईक्यू1) का विनाशकारी भूकंप आया, जो भूमि पर अंकित की गई सबसे बड़ी स्ट्राइक-स्लिप घटनाओं में से एक है। इसके लगभग 9 घंटे बाद ईक्यू 1 के उत्तर में एमडब्ल्यू 7.7 (ईक्यू 2) का भूकंप आया।
विश्लेषण करते हुए, पहली बार यह पता चला कि कोसेस्मिक आयनोस्फेरिक पर्टर्बेशन (सीआईपी) के अलग-अलग समय अंतराल के साथ कई स्रोतों वाले उप-सीआईपी के संयोजन के कारण विभिन्न उपग्रह-केन्द्रों के जोड़ों के लिए विभिन्न प्रकार के आयाम और अवधि दिखाते हैं। उन्होंने विस्तार से बताया कि इन कई स्रोतों से ध्वनिक तरंगों (एडब्ल्यू) के हस्तक्षेप से भूकंप के केंद्र से अलग-अलग अज़ीमुथ में ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम स्टेशनों पर गड़बड़ी के आयाम और अवधि में अंतर होता है।
--आईएएनएस
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