नई दिल्ली, 12 मार्च (आईएएनएस)। केंद्र की मोदी सरकार ने 'नागरिकता संशोधन कानून' को लागू कर दिया है। इसके बाद से पूरे देश में इस पर चर्चा हो रही है। वहीं, यूएस, यूके और कनाडा के हिंदू संगठनों ने भी केंद्र के इस कदम को मानवाधिकार के मोर्चे पर बड़ी जीत बताया है।बता दें कि नागरिकता संशोधन कानून 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए अहम एजेंडा था। इस कानून के अनुसार, हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी को भारत की नागरिकता दिए जाने का प्रावधान है, जो धर्म के आधार पर सताए जाने के बाद 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आ गए। कानून के मुताबिक, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धर्म के आधार पर सताए गए लोगों को भारत की नागरिकता दिए जाने का प्रावधान है।
कनाडा के हिंदू फोरम ने अपने बयान में कहा, "पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धर्म के आधार पर सताए जाने के बाद भारत में शरण लेने वाले हिंदुओं को भारत की नागरिता दिलाने के लिए मार्ग प्रशस्त करना केंद्र की मोदी सरकार का सराहनीय कदम है। मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा और विभिन्न अन्य अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के हस्ताक्षरकर्ता के रूप में, भारत का दायित्व है कि वह सताए गए व्यक्तियों को उनके धर्म की परवाह किए बिना शरण प्रदान करे।"
वहीं, केंद्र के कदम के बाद वैश्विक मोर्चे पर सक्रिय हिंदू संगठनों ने विश्वास जताया कि आगामी दिनों में भारतीय नागरिकों के बीच इससे भाईचारा बढ़ेगा।
अमेरिका स्थित कोलिशन ऑफ हिंदूस ऑफ नॉर्थ अमेरिका ने केंद्र की मोदी सरकार के इस कदम को मानवाधिकार के मोर्चे पर बड़ी जीत बताया।
वहीं, बयान में आगे कहा गया है कि सीएए के लागू होने से मौजूदा नागरिकों की नागरिकता पर किसी भी प्रकार की आंच नहीं आएगी। चाहे वो किसी-भी धर्म संप्रदाय या पंथ के क्यों ना हों।
हिंदू संगठनों ने अपने बयान में कहा कि पाकिस्तान में प्रतिवर्ष अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुक रखने वाले अनेकों लड़कियों का अपहरण कर उनका धर्मांतरण कराया जाता है, जिसके बाद उनकी शादी अपहरणकर्ताओं से पुलिस और न्यायपालिका की मदद से कराई जाती है। कई बार पीड़िताओं की ओर से इंसाफ की गुहार लगाई जाती है, लेकिन अफसोस हर बार उन्हें अनसुना कर दिया जाता है।
वहीं, बयान में कहा गया है कि पाकिस्तान से कई डरे हुए परिवार भारत में आए, ताकि अपने परिवार की जान बचा सकें और बच्चों को स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करा सकें।
हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन (एचएएफ) के कार्यकारी निदेशक सुहाग शुक्ला ने कहा कि यह कानून लंबे समय से प्रतीक्षित और आवश्यक था। यह भारत में कुछ सबसे कमजोर शरणार्थियों की रक्षा करता है, उन्हें वे मानवाधिकार प्रदान करता है, जिनसे उन्हें अपने देश में वंचित किया गया था।
उन्होंने आगे कहा, "मुझे यह देखकर गर्व है कि दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र - अमेरिका और भारत - उन लोगों के लिए स्वतंत्रता और नए जीवन का मार्ग प्रशस्त कर आशा की किरण बन रहे हैं, जिन्होंने घोर मानवाधिकार उल्लंघनों का सामना किया है।"
वहीं, लंदन के एक हिंदू अधिवक्ता ने कहा, "यह धार्मिक स्वतंत्रता और समानता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का प्रतिबिंब है, जो इसके धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने का अभिन्न अंग है।"
हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन ने अपने बयान में कहा, "सीएए किसी भी भारतीय नागरिक के अधिकारों में बदलाव नहीं करता है और न ही यह सामान्य आव्रजन के लिए कोई धार्मिक परीक्षण स्थापित करता है या मुसलमानों को भारत में प्रवास करने से रोकता है, जैसा कि कभी-कभी गलत तरीके से कहा और रिपोर्ट किया जाता है।"
हिंदू फोरम कनाडा ने अपने बयान में कहा कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे देशों मेंं मुस्लिमों के पास गैर-मुस्लिमों की तुलना में ज्यादा अधिकार है। इन देशों में गैर-मुस्लिमों के साथ संवैधानिक भेदभाव किए जाते हैं।
हालांकि, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह संसद में दोहरा चुके हैं कि नागरिकता संशोधन कानून के लागू होने से किसी भी भारतीय मुस्लिम की नागरिकता पर आंच नहीं आएगी। लिहाजा किसी भी मुस्लिम भाई बहन को घबराने की जरूरत नहीं है।
इसके साथ ही अमित शाह ने स्पष्ट कर दिया था कि विपक्षी दलों को सीएए के नाम पर किसी भी प्रकार की राजनीति करने की आवश्यकता नहीं है।
--आईएएनएस
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