पटना, 26 अगस्त (आईएएनएस)। कोई भूमिका नहीं, सीधा सवाल, और सवाल भी तीखा कि आखिर आजादी के सात दशकों के बाद भी समस्त विश्व में अपनी विराट संस्कृति के लिए सुप्रसिद्ध बिहार आज भी क्यों निर्धनता की पीड़ा से कराह रहा है? आखिर क्यों आज भी वहां विकास के दावे हवा-हवाई साबित हो रहे हैं? आखिर क्यों आज भी वहां के युवा अपनी महत्वाकांक्षाओं का गला घोंटने पर बाध्य हैं? आखिर क्यों आज भी वहां के युवाओं को रोजगार के लिए अन्य प्रदेशों की शरण लेता पड़ता है? और इन सबके बीच सबसे अहम सवाल कि आखिर बिहार को ही क्यों पूरे देश में ‘श्रमिक प्रदेश’ के रूप में जाना जाता है? क्या पूरे देश की मजदूरी का बीड़ा बिहार ने ही उठाया है? इस बीच, सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर वो कौन है, जिन्होंने बिहार को श्रमिक प्रदेश का दर्जा दिलाकर हर बिहारी के हितों पर कुठाराघात करने का दुस्साहस किया? इस रिपोर्ट में इन्हीं तीखे सवालों को तफ़सील से जानने का प्रयास करेंगे। सत्ता बदली, सियासत बदली और सत्ता के ध्वजवाहक भी बदले, लेकिन अगर कुछ नहीं बदला, तो वो थी बिहार की बदहाली, बिहार की बदनसीबी, बिहार का दुर्दशा। नेता आए और गए, किसी ने दावे किए तो किसी ने वादे। लेकिन जमीन पर बदहाली के इतर और कुछ नहीं दिखा। आज भी वहां के धन कुबेर ना तो वहां निवेश करने के लिए तैयार हैं और ना ही वहां के राजनेताओं में बिहार को विकसित करने की दिशा में कोई उत्साह नजर आता है।
इसके पीछे की वजह जब आईएएनएस ने विख्यात अर्थशास्त्री डॉ विधार्थी विकास से जानने का प्रयास किया तो उन्होंने इसके लिए राज्य के साथ–साथ केंद्र को भी जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा, ''अगर आप यह जानना चाहते हैं कि आखिर क्यों बिहार को श्रमिक प्रदेश होने से छुटकारा नहीं मिला है, तो इसके लिए इसे आपको राष्ट्रीय स्तर पर देखना होगा, क्योंकि बिहार को लेकर केंद्र सरकार का रवैया पंचवर्षीय योजना से लेकर अब तक भेदभावपूर्ण रहा है। जो प्राथमिकता बिहार को केंद्र सरकार की ओर से मिलनी चाहिए थी, वो आज तक नहीं मिली। बिहार के साथ सौतेला व्यवहार हुआ है।''
वह आगे बताते हैं, ''अगर आप देखें साल 1968-1969 के आसपास विभिन्न राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा देने की प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन, तब जो राज्य थे और उस समय जो बिहार की स्थिति थी, वो अन्य प्रदेशों की तुलना में बेहतर थी, फिर भी जिस तरह से केंद्र सरकार ने बिहार को उपेक्षित किया, वहां के लोगों के हितों पर कुठाराघात किया, वहां बड़ी-बड़ी परियोजनाओं को जमीन पर उतारने से रोका, कल–कारखाने और उद्योगों को स्थापित करने से केंद्र सरकार बचती रही और इस तरह के कई कारण रहे, जिसकी वजह से बिहार कहीं ना कहीं पीछे रह गया। मैं समझता हूं कि केंद्र के सौतेले व्यवहार की वजह से भी बिहार कहीं ना कहीं पीछे रह गया''
उन्होंने आगे कहा, ''अगर हम चाहते हैं कि बिहार को श्रमिक प्रदेश से छुटकारा मिले, तो मैं यही कहूंगा कि वहां हमें शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने की जरूरत है। इसके अलावा, वहां के सरकारी स्कूल में शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने की दिशा में कदम उठाए जाएंगे, तो निःसंदेह वही लोग आगे चलकर प्रदेश के विकास में अहम भूमिका निभा सकते हैं। बिहार में पेशेवर शिक्षाओं पर जोर देने की आवश्यकता है, ताकि आगे चलकर एक कुशल युवाओं की फौज खड़ी की जा सके, ताकि वह खुद के लिए और दूसरों के लिए रोजगार सृजित कर सकें। बिहार में छोटे उद्योग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। अगर हम इन सभी को अपनाएंगे तभी जाकर बिहार को श्रमिक प्रदेश के तमगे के छुटकारा मिल सकेगा।''
उधर, इस संबंध में जब जेडीयू नेता एनपी यादव से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, ''बिहार परिश्रम करने वाला प्रदेश है। वहां हर क्षेत्र में परिश्रमी लोग हैं, लेकिन बिहार का जब बंटवारा हुआ और नया राज्य झारखंड बना, तो बिहार को थोड़ी परेशानी हुई। हालांकि, मौजूदा समय में कई क्षेत्रों में बिहार परिश्रमी है। अगर हम बिहार को श्रमिक प्रदेश के तमगे से बाहर लाना चाहते हैं, तो इसके लिए हमें बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाना होगा। अगर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलेगा, तो कई तरह के कल कारखाने और उद्योग यहां लगेंगे।''
उन्होंने आगे कहा, ''मौजूदा समय में बिहार में निर्धन तबके के लोगों को गरीबी से छुटकारा मिल रहा है। मौजूदा सरकार इस दिशा में लगातार काम कर रही है। नीतीश कुमार ने शिक्षा को विस्तारित करने की दिशा में अनेकों कदम उठाए हैं। इसके अलावा, पिछले दो वर्षों में नई-नई नौकरियों का सृजन हुआ है।''
उन्होंने इस बात पर जोर दिया, ''ना केवल बिहार, बल्कि कई प्रदेशों में श्रमिक हैं। अगर श्रमिक नहीं रहेंगे, तो वहां उत्पादन नहीं हो पाएगा। कल कारखाने संचालित नहीं हो पाएंगे और ना ही निर्माण का कोई काम हो पाएगा। हालांकि, बिहार पिछड़ा है। इस बात को खारिज नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसका एकमात्र उपचार यही है कि इसे केंद्र सरकार की ओर से विशेष राज्य का दर्जा दिलाया जाए, तभी जाकर इसे श्रमिक प्रदेश के तमगे के छुटकारा मिलेगा।''
वहीं, बिहार में दो दशक तक रहने वाले वहां के स्थानीय निवासी अजीत झा इस बात को सिरे से खारिज करते हैं कि बिहार एक गरीब राज्य है। इसके इतर, वे लोगों से आह्वान कर रहे हैं कि सभी लोग श्रमिक के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदलें। वह कहते हैं कि बिना श्रमिकों के विकास की गति को तेज नहीं किया जा सकता है। जरूरत है कि अब हम श्रमिकों को लेकर अपना दृष्टिकोण बदलें और उन्हें हेय दृष्टि से देखना बंद करें।
--आईएएनएस
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