नयी दिल्ली , 19 जून (आईएएनएस)। गत आठ माह से विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) लगातार बिकवाल बने हुए हैं, ऐसे में गत 15 माह से लगातार लिवाली करने वाले घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) से शेयर बाजार राहत की सांस ले पा रहा है।मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के मुताबिक एफआईआई ने मई में बाजार से 4.9 अरब डॉलर की पूंजी निकाली जबकि डीआईआई ने 6.1 अरब डॉलर का निवेश किया।
एफआईआई ने गत एक साल में कुल 25 अरब डॉलर की पूंजी निकासी की है। एफआईआई की बिकवाली का यह दौर वैश्विक वित्तीय संकट के बाद का सबसे बड़ा दौर रहा है।
निफ्टी मई में माह दर माह आधार पर तीन प्रतिशत लुढ़ककर 16,585 अंक पर आ गया। यह गिरावट का लगातार दूसरा माह और मार्च 2020 के बाद तीसरा बड़ी मासिक गिरावट थी।
मई में भारतीय बाजार गिरावट झेलने वाले बाजारों में शामिल रहा। भारतीय बाजार तीन फीसदी, रूस सात फीसदी और इंडोनेशिया एक फीसदी लुढ़का। दूसरी तरफ चीन में पांच प्रतिशत, ब्राजील तीन प्रतिशत, जापान दो प्रतिशत और ताइवान तथा ब्रिटेन एक-एक प्रतिशत उछला। गत 12 माह के दौरान एमएससीआई इंडिया सात प्रतिशत की तेजी में रहा जबकि एमएससीआई ईएम 22 प्रतिशत की गिरावट में रहा।
क्षेत्रवार वाहन पांच प्रतिशत और कंज्यूमर एक प्रतिशत की तेजी में रहा। दूसरी तरफ धातु 16 प्रतिशत, यूटिलिटीज 11 प्रतिशत, तेल एवं गैस 10 प्रतिशत और रियल एस्टेट सात प्रतिशत की गिरावट में रहा।
भारत का बाजार पूंजीकरण-जीडीपी अनुपात उतार-चढ़ाव के बीच रहा। वित्त वर्ष 19 में यह 80 प्रतिशत था, जो मार्च 20 में 56 प्रतिशत पर आ गया। इसका दीर्घावधि औसत 79 प्रतिशत है जो मौजूदा समय में 112 प्रतिशत पर आ गया है। यह अनुपात कैलेंडर वर्ष 07 के बाद सर्वाधिक है। वित्त वर्ष 23 के अनुमानित जीडीपी विकास दर के आधार पर यह अनुपात 98 प्रतिशत पर रहेगा।
एक्युइट रेटिंग्स के मुताबिक, विश्व के प्रमुख केंद्रीय बैंकों द्वारा मौद्रिक नीति के सख्त करने से वैश्विक पूंजी बाजार में भारी उथलपुथल मची हुई है, जो चिंता की बात है। इसी वजह से एफआईआई लगातार बिकवाल बने हुए हैं, जिससे रुपये पर दबाव बढ़ रहा है। रुपये पर पहले से ही बढ़ते चालू खाता घाटा का दबाव है।
--आईएएनएस
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