iGrain India - नई दिल्ली । केन्द्र सरकार ने सभी किस्मों एवं श्रेणियों के चावल का निर्यात सीमित करने के लिए कदम उठाया है ताकि घरेलू प्रभाग में इसकी पर्याप्त आपूर्ति एवं उपलब्धता सुनिश्चित करते हुए कीमतों में तेजी पर अंकुश लगाया जा सके।
इसके तहत टुकड़ी चावल एवं गैर बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लग चुका है। गैर बासमती सेला चावल पर 20 प्रतिशत का निर्यात शुल्क लगाया गया है और बासमती चावल के लिए 1200 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य नियत किया गया है।
अब चीनी के बारे में कयास लगना शुरू हो गया है। दो प्रमुख उत्पादक राज्यों- महाराष्ट्र एवं कर्नाटक में वर्षा की कमी से गन्ना की फसल प्रभावित हो रही है जिससे चीनी का उत्पादन घट सकता है।
हालांकि गन्ना की क्रशिंग का नया मार्केटिंग सीजन शुरू होने से एक माह से अधिक समय बाकी है और इस बीच में परिदृश्य तेजी से बदल सकता है।
लेकिन यदि उत्पादन में गिरावट की संभावना बरकरार रही तो सरकार 2023-24 के मार्केटिंग सीजन में चीनी के निर्यात की अनुमति देने से इंकार कर सकती है क्योंकि अगले साल देश में आम चुनाव होने जा रहा है।
महाराष्ट्र सबसे प्रमुख चीनी उत्पादक राज्य है जबकि कर्नाटक तीसरे नम्बर पर है। इस बार तमिलनाडु में भी गन्ना के बिजाई क्षेत्र में कुछ गिरावट आने के संकेत मिले हैं।
जहां तक गेहूं का सवाल है तो इसके निर्यात पर मई 2022 से ही प्रतिबंध लगा हुआ है और निकट भविष्य में इसके समाप्त होने की संभावना नहीं है। तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद गेहूं की कीमतों में अपेक्षित नरमी नहीं आ रही है।
जानकारों का मानना है कि दिसम्बर-जनवरी में इसका दाम कुछ और बढ़ सकता है। अब सबका ध्यान इस ओर लगा हुआ है कि सरकार गेहूं पर लगे 40 प्रतिशत के भारी- भरकम आयात शुल्क को वापस लेने की घोषणा करती या नहीं। सरकार का निर्णय आकस्मिक होता है इसलिए किसी भी संभावना से इंकार करना मुश्किल है।