नई दिल्ली, 6 नवंबर (आईएएनएस)। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नियंत्रित डिजिटल रुपये की दिशा में भारत की यात्रा शुरू होते ही साइबर सुरक्षा और गोपनीयता को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।यूएस फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष जेरोम पॉवेल ने हाल ही में साइबर खतरे को वित्तीय स्थिरता से संबंधित अपनी सबसे बड़ी चिंता के रूप में सूचीबद्ध किया। साथ ही हाल ही में यूके हाउस ऑफ लॉर्डस की रिपोर्ट में साइबर सुरक्षा और गोपनीयता खतरों को केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (सीबीडीसी) विकसित नहीं करने के संभावित कारणों के रूप में वर्णित किया गया है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के मुताबिक, ये चिंताएं निराधार नहीं हैं।
सेंट्रल बैंकर्स न्यू साइबर सिक्योरिटी चैलेंज नामक एक आईएमपी पेपर के अनुसार, सीबीडीसी कमजोरियों का फायदा उठाकर देश की वित्तीय प्रणाली से समझौता किया जा सकता है। सीबीडीसी अभूतपूर्व पैमाने पर बड़े भुगतान और यूजर डेटा जमा करने में सक्षम है। लेकिन, गलत हाथों में इस डेटा का इस्तेमाल नागरिकों के निजी लेनदेन की जासूसी करने, व्यक्तियों और संगठनों के बारे में जरुरी विवरण प्राप्त करने और यहां तक कि पैसे चोरी करने के लिए किया जा सकता है।
अगर उचित सुरक्षा प्रोटोकॉल के बिना लागू किया जाता है, तो सीबीडीसी आज की वित्तीय प्रणाली में पहले से मौजूद कई सुरक्षा और गोपनीयता खतरों के दायरे और पैमाने को काफी हद तक बढ़ा सकता है।
जैसा कि आरबीआई ई-रुपये पायलट प्रोजेक्ट के साथ आगे बढ़ता है, गवर्नर शक्तिकांत दास ने हाल ही में साइबर सुरक्षा और डिजिटल धोखाधड़ी को नई सीबीडीसी प्रणाली में मुख्य चुनौतियों के रूप में चिन्हित किया है।
दास ने कहा था, चिंता साइबर सुरक्षा और डिजिटल धोखाधड़ी की संभावना के कारण बढ़ती है। हमें इसके बारे में बहुत सावधान रहना होगा।
आरबीआई गवर्नर ने कहा, कुछ साल पहले, नकली भारतीय मुद्रा नोटों पर हमारी एक बड़ी चिंता थी। इसी तरह की चीजें सीबीडीसी को लॉन्च करते समय भी हो सकती हैं।
आईएमएफ पेपर के अनुसार, सीबीडीसी के लिए कई प्रस्तावित डिजाइन वेरिएंट में लेनदेन डेटा का कलेक्शन शामिल है, जो प्रमुख गोपनीयता और सुरक्षा का खतरा पैदा करता है।
पेपर में कहा गया, एक गोपनीयता के ²ष्टिकोण से, इस तरह के डेटा का उपयोग नागरिकों की भुगतान गतिविधि का सर्वे करने के लिए किया जा सकता है। एक ही स्थान पर इतने संवेदनशील डेटा को जमा करने से सुरक्षा जोखिम भी बढ़ जाता है।
आरबीआई गवर्नर दास के अनुसार, हमें साइबर सुरक्षा सुनिश्चित करने और किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी को रोकने के लिए निवारक कदम उठाने के संबंध में और अधिक सावधान रहना होगा।
आईएमएफ पेपर ने कहा, क्रिप्टोग्राफिक टूल द्वारा सहायता प्राप्त की जा सकती है, जैसे कि जीरो-नॉलेज प्रूफ, जो बिना खुलासा किए निजी जानकारी को प्रमाणित करता है और इसे समझौता करने की अनुमति देता है।
कई देशों ने खुदरा सीबीडीसी को प्रतिबद्ध किया है, जिसका अंतर्निहित बुनियादी ढांचा वितरित खाता प्रौद्योगिकी पर आधारित है।
अक्टूबर 2021 में लॉन्च किया गया नाइजीरिया का ई-नायरा एक अच्छा उदाहरण है। इस तरह के डिजाइनों में लेनदेन के वेलिडेटर्स के रूप में तीसरे पक्ष की भागीदारी की आवश्यकता होती है।
आईएमएफ पेपर ने कहा, इन रेगुलेशन्स को समय-संवेदी और वितरित-लेजर-आधारित सीबीडीसी के रूप में एक-दूसरे से जुड़े हुए सिस्टम में तैयार करने के लिए कोई स्पष्ट खाका नहीं है। यही कारण है कि तेजी से विकास और अपनाने के इस क्षण में अंतरराष्ट्रीय मानक-सेटिंग और बैंकों के बीच अधिक ज्ञान साझा करने की आवश्यकता है।
--आईएएनएस
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