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तानसेन के वंशज अब्दुल रशीद खान, जिनकी आवाज़ सुन बरसने लगते थे बादल

प्रकाशित 19/08/2024, 07:37 pm
तानसेन के वंशज अब्दुल रशीद खान, जिनकी आवाज़ सुन बरसने लगते थे बादल

नई दिल्ली, 19 अगस्त (आईएएनएस)। 'ये ज़मीं बनती गई, ये आसमां बनता गया, मैं एक कदम रखता गया और ये जहां बनता गया।' ऐसे ही अपने गीतों से लोगों को दीवाना बनाया शास्त्रीय गायक उस्ताद अब्दुल रशीद खान ने। गायिकी की दुनिया में उन्होंने लगभग 100 साल का सफर पूरा किया। खास बात ये है कि चलने-फिरने में तकलीफ होने के बावजूद भी उस्ताद अब्दुल रशीद खान सार्वजनिक प्रस्तुति देते रहे और रियाज में भी कोई कमी नहीं छोड़ी। उस्ताद अब्दुल रशीद खान उत्तर प्रदेश के रायबरेली में पैदा हुए प्रसिद्ध भारतीय गायकों में से एक थे। अब्दुल साहब को 'रसन पिया' के नाम से भी जाना जाता था। अब्दुल रशीद का घराना कई संगीतकारों से भरा हुआ था। उन्होंने अपने बुजुर्गों जैसे चांद खान, बरखुरदार खान और महताब खान जैसे दिग्गजों से गायिकी की शुरुआती तालीम ली।

करीब 100 साल तक गायिकी की दुनिया में बेमिसाल किरदार रशीद खान ने जिंदगी के अंतिम लम्हों तक रियाज से नाता नहीं तोड़ा। यही हौसला रशीद खान को अपने दौर के गायकों से अलग बनाती है। आज भी उनकी गायिकी कइयों के दिलों को सुकून देने वाली है। वह पद्म पुरस्कार से सम्मानित होने वाले सबसे उम्रदराज व्यक्ति थे। तानसेन की 16वीं पीढ़ी के अब्दुल रशीद खान भारतीय संगीत में दशकों तक जगमगाते रहे।

उस्ताद अब्दुल रशीद खान ध्रुपद, खयाल और ठुमरी को बेहद दिलचस्प ढंग से गाते थे। अब्दुल रशीद खान का अनूठापन उनके गाने 'हरी ओम' में महसूस किया जा सकता है और आवाज़ में सरगम की ऐसी उतार-चढ़ाव की आप उनके मुरीद हो जाएं। जब भी आप उनको सुनेंगे तो लगेगा शायद आपको जिंदगी का एहसास हो गया। अपने उम्र के अंतिम पड़ाव में उनका जिस्म तो कांपने लगा ,लेकिन सुर कभी नही कांपे, वो हमेशा सटीक लगे।

आज भी अगर आप उन्हें सुनेंगे तो लगेगा आखिर अपने उम्र के अंतिम पड़ाव में कोई सुरों की डोर को इतने बेहतरीन तरीके से कैसे पकड़ सकता है। शुरुआत में अपनी वालिदा से तालीम ली और फिर उस्ताद यूसुफ खान से तालीम को आगे बढ़ाया। शुरुआत में जब सुर सटीक नहीं लगे, तो खूब डांट भी पड़ी। लेकिन, कभी भी मायूस नहीं होकर उस्ताद अब्दुल रशीद खान ने उस डांट को चुनौती और संघर्ष की तरह लिया।

अब्दुल रशीद खान ने वो दौर भी देखा जब उन्हें किसी ने उनकी गायिकी से जलन के कारण खाने में पारा मिलाकर दे दिया था। इतने बड़े गायक होने के बाद भी खान साहब हमेशा जमीन से जुड़े रहे और संयम बनाए रखा। उनका सरल स्वाभाव देखकर अंदाजा लगा पाना मुश्किल था कि वो बड़े भारतीय शास्त्रीय गायक थे। उनका गाना 'राम तेरा आसरा' पर लोगों की भीड़ खड़े होकर उनका अभिवादन करती थी और देर तक दर्शकों की तालियां रुकती नहीं थी।

2000 से ज्यादा गीत देने वाले उस्ताद अब्दुल रशीद खान आज भी मानों ज़िंदा हैं। कहते हैं कि वो राग मल्हार गाते थे तो बारिश हो जाती थी। उन्हें राष्ट्रपति भवन में भी गाने का मौका मिला। अब्दुल रशीद खान आने वाली पीढ़ी को यही सलाह दी कि संगीत को समय दो और लगन दो और रियाज की अपने बच्चे की तरह परवरिश करो। 107 वर्ष की आयु में 18 फरवरी 2016 को उस्ताद रशीद खान ने दुनिया को अलविदा कह दिया। लेकिन, आज भी अपने चाहने वालों के बीच सुर साधते मौजूद हैं।

--आईएएनएस

एसके/एबीएम

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