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चूंकि दक्षिण भारत भाजपा के पक्ष में नहीं, इसलिए द्रमुक मिशन 24 पर काम करने को तैयार

प्रकाशित 10/12/2023, 12:07 am
चूंकि दक्षिण भारत भाजपा के पक्ष में नहीं, इसलिए द्रमुक मिशन 24 पर काम करने को तैयार

चेन्नई, 9 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर भारत के तीन महत्वपूर्ण राज्यों में भाजपा के क्लीन स्वीप से दक्षिण भारत और विशेष रूप से द्रविड़ संस्कृति के हृदय तमिलनाडु में भारतीय राष्ट्रीय जनतांत्रिक समावेशी गठबंधन (इंडिया) की संभावनाओं पर कोई खास असर नहीं पड़ा है।हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि पांच में से तीन राज्यों में भाजपा की जीत तमिलनाडु में भगवा पार्टी के लिए मनोबल बढ़ाने का काम करेगी, एक ऐसा राज्य जो लोकसभा के लिए 40 सदस्यों का चुनाव करता है।

राजनीतिक विश्‍लेषकों के अनुसार, भले ही अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (अभा अन्नाद्रमुक) ने भाजपा से नाता तोड़ लिया है, लेकिन भगवा पार्टी किसी एक निर्वाचन क्षेत्र में जीत दर्ज कर सकती है।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन हालांकि दिवंगत मुख्यमंत्रियों एम. करुणानिधि और जे. जयललिता के कद की बराबरी नहीं कर पा रहे हैं, लेकिन धीरे-धीरे और लगातार राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में अपनी स्थिति मजबूत कर रहे हैं।

द्रमुक कार्यकर्ता इस बात का जश्‍न मना रहे हैं कि कांग्रेस ने तेलंगाना में जीत हासिल कर भाजपा को दक्षिण भारत से बाहर कर दिया है।

राजनीतिक कार्यकर्ता और मनोवैज्ञानिक कीर्तिका थारन ने आईएएनएस को बताया कि उत्तर भारत के तीन राज्यों के नतीजे थोड़े परेशान करने वाले थे और अपेक्षित नहीं थे। हालांकि, हिंदुत्ववादी पार्टी के रूप में भाजपा का दक्षिण भारत से सफाया हो गया है।

उन्होंने कहा, “हमें उम्मीद है कि उत्तर भारत के लोग अपनी मानसिकता बदलेंगे। हम हिंदी भाषा सीखना चाहते हैं, क्योंकि द्रविड़ लोग उत्तर भारत में हमारी विचारधारा के बारे में जागरूकता लाना चाहते हैं।''

“द्रमुक लोकसभा चुनाव में 39 से 40 सीटें जीतेगी। अभी पार्टी को चुनौती नहीं दी जा सकती। वे समाज सेवा में सशक्त हैं और लोगों को 2,000 रुपये मासिक भत्ता मिल रहा है, लोग द्रमुक से खुश हैं।”

कीर्तिका थारन ने कहा, अन्नाद्रमुक को भाजपा की 'बी टीम' माना जाता है, ठीक उसी तरह जैसे तेलंगाना में बीआरएस और पूर्व सीएम के.सी. राव को माना जाता था। दस साल बाद भी अन्नाद्रमुक के एडप्पादी के पलानीस्वामी (ईपीएस) और पूर्व सीएम अभी भी स्टालिन के सामने कमजोर दिख रहे हैं।

हालकि करुणानिधि और जयललिता के बाद कोई राजनेता उनकी जगह नहीं ले सके। सीएम स्टालिन कम से कम कोशिश तो कर रहे हैं। दरअसल, ईपीएस के लिए वी.के. शशिकला और टी.टी.वी. दिनाकरन के खिलाफ खड़ा होना भी आसान नहीं था। उन्होंने कहा, वह अभी सबसे आगे हैं लेकिन सीएम स्टालिन के सामने कमजोर दिखते हैं।

उन्होंने कहा, निस्संदेह सीएम स्टालिन को हर कोई जानता है, और उनके आसपास कोई विवाद नहीं है।हालांकि विवाद हैं, लेकिन वह व्यक्तिगत तौर पर सबसे अलग हैं।

भाजपा और आरएसएस योजनाबद्ध तरीके से तमिलनाडु में जमीनी स्तर पर पार्टी को खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा राज्य में भारी निवेश कर रही है और पार्टी कार्यकर्ताओं का दावा है कि उन्हें मासिक आधार पर भुगतान किया जाता है। उन्होंने कहा, एक बार जब पार्टी कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हो जाएंगे, तो उन्हें हिंदू विचारधारा से प्रेरित किया जाएगा।

“हम भाजपा को नजरअंदाज नहीं कर सकते। तमिलनाडु में पार्टी का आधार बनाने की तमाम कोशिशें की जा रही हैं. वे एक सीट जीतने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। वे तमिलनाडु में मणिपुर और मंगलुरु जैसी स्थिति पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं,'' उन्होंने कहा।

कीर्तिका थारन ने कहा कि भाजपा को उन लोगों के 2 फीसदी से 5 फीसदी वोट मिल सकते हैं, जो हमेशा नई पार्टियों को वोट देते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार जयकुमार सुंदंधिरापांडियन ने आईएएनएस को बताया कि तमिलनाडु में द्रविड़ पार्टियां सबसे प्रभावशाली हैं।

उन्‍होंने कहा, “द्रविड़ आंदोलन खुद कहता है कि ‘हम एक हैं’। वे कहते हैं कि हम दक्षिण भारतीय हैं और कभी भी खुद को तमिल होने का दावा नहीं करते। तेलंगाना में कांग्रेस की जीत के बाद राजनीतिक दलों और लोगों का मानना है कि भाजपा कभी भी दक्षिण भारत में अपना प्रभाव नहीं जमा सकेगी।”

--आईएएनएस

एसजीके

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