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विधानसभा चुनावों में देरी के खिलाफ नेशनल कॉन्फ्रेंस व पीडीपी एकजुट होकर हुुईं मुखर

प्रकाशित 16/12/2023, 06:37 pm
विधानसभा चुनावों में देरी के खिलाफ नेशनल कॉन्फ्रेंस व पीडीपी एकजुट होकर हुुईं मुखर

श्रीनगर, 16 दिसंबर (आईएएनएस)। मुख्यधारा के क्षेत्रीय राजनीतिक दलों और कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव में देरी के लिए केंद्र के खिलाफ अपना स्वर तेज कर दिया है।

पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के उपाध्यक्ष, उमर अब्दुल्ला ने भाजपा पर मतदाताओं का सामना करने से कतराने का आरोप लगाया है और एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री, महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने भाजपा पर विधानसभा चुनावों में देरी करके उपराज्यपाल के माध्यम से जम्मू-कश्मीर पर अपना शासन जारी रखने का आरोप लगाया है।

कांग्रेस ने भाजपा पर केंद्र शासित प्रदेश में लोकतंत्र की बहाली के लिए काम करने के बजाय अपनी पार्टी के एजेंडे को आगे बढ़ाने का आरोप लगाया है।

एनसी, पीडीपी और अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसे क्षेत्रीय मुख्यधारा के राजनीतिक दलों ने सीपीआई-एम के साथ मिलकर पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकर डिक्लेरेशन नामक गठबंधन बनाकर एक-दूसरे से दूरी बना ली है।

मूल रूप से अनुच्छेद 370 की बहाली और जम्मू-कश्मीर के लिए राज्य का दर्जा के लिए एकजुट होकर काम करने की योजना बनाई गई थी, गठबंधन अब केंद्र शासित प्रदेश में भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए कमोबेश एक संयुक्त मोर्चे में तब्दील हो गया है।

एनसी और पीडीपी दोनों ही विधानसभा चुनावों के लिए अपनी तैयारी दिखाने के लिए राजनीतिक गतिविधियां चला रहे हैं।

विडंबना यह है कि पीडीपी का गठन दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद सैयद ने एनसी के खिलाफ मतदाताओं को एक क्षेत्रीय विकल्प प्रदान करने के लिए किया था। आज, दोनों ने उस चीज़ के लिए हाथ मिलाया है, जिसे दोनों पार्टियां 'जम्मू-कश्मीर के लोगों का व्यापक हित' कहती हैं।

दोनों दलों के मध्य स्तर के नेताओं के एक-दूसरे के खिलाफ बयानों के बावजूद, एनसी और पीडीपी के शीर्ष नेताओं ने गठबंधन को बनाए रखने की कोशिश की है।

दोनों मुख्य रूप से घाटी केंद्रित पार्टियां हैं, विधानसभा चुनाव के दौरान वे अपने बीच सीटें कैसे साझा करते हैं यह एक खुला प्रश्न बना हुआ है।

दोनों कट्टर प्रतिद्वंद्वियों ने अतीत में एक-दूसरे पर झूठे वादे करके मतदाताओं का शोषण करने का आरोप लगाया है। दोनों पार्टियां साझा वादे कैसे करती हैं और ये वादे क्या होंगे, यह भी देखना होगा।

जहां तक धारा 370 की बहाली का सवाल है, सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने उस अध्याय को हमेशा के लिए बंद कर दिया है, हालांकि एनसी और पीडीपी दोनों ने कहा है कि वे धारा 370 की बहाली के लिए अपना संघर्ष जारी रखेंगे।

ये दोनों पार्टियां जम्मू-कश्मीर में सत्ता में आने पर भी धारा 370 कैसे बहाल करा सकती हैं?

कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर कहा है कि अगर पार्टी केंद्र में सत्ता में आई तो अनुच्छेद 370 को बहाल किया जाएगा।

अगर कांग्रेस अनुच्छेद 370 की बहाली को पार्टी के चुनावी वादों में से एक बनाती है, तो वह जम्मू संभाग और जम्मू-कश्मीर के बाहर मतदाताओं का सामना कैसे करेगी?

एनसी और पीडीपी दोनों के लिए अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए लड़ाई जारी रखना आत्म-पराजय हो सकता है।

जम्मू-कश्मीर के मतदाताओं को यह विश्वास नहीं दिलाया जा सकता कि आगामी विधानसभा चुनावों के दौरान इन दोनों पार्टियों को वोट देने से अंततः अनुच्छेद 370 वापस आ जाएगा।

जहां तक राज्य का दर्जा बहाल करने का सवाल है, केंद्र पहले ही कह चुका है कि इसे बहाल किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार को जल्द से जल्द जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने का भी निर्देश दिया।

इसलिए, एनसी और पीडीपी द्वारा राज्य के दर्जे की मांग चुनाव के दौरान उनके लिए वोट आकर्षित करने वाला नहीं बन सकती है।

इन क्षेत्रीय मुख्यधारा की पार्टियों को उन वादों से आगे बढ़ना होगा जो अब लोगों को खोखले लगते हैं।

उन्हें रोजगार, विकास, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, पर्यटन, उद्योग आदि पर बात करनी होगी।

क्या ये दोनों पार्टियां अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी, भाजपा को ऐसे चुनाव में हरा पाएंगी, जहां भाजपा का मुख्य चुनावी मुद्दा विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, पर्यटन, उद्योग के साथ-साथ महिलाओं का सशक्तिकरण और जम्मू-कश्मीर समाज के कम विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग होंगे?

जहां तक चुनाव के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं की लामबंदी का सवाल है, एनसी और भाजपा दोनों भारत के चुनाव आयोग द्वारा विधानसभा चुनावों की घोषणा की तैयारी में इंतजार कर रहे हैं।

--आईएएनएस

सीबीटी

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