नई दिल्ली, 18 जनवरी (आईएएनएस)। गुजरात सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि राज्य में 2002 से 2006 तक हुई कथित फर्जी मुठभेड़ों की जांच की मांग करने वाली जनहित याचिकाओं (पीआईएल) पर कभी भी विचार नहीं किया जाना चाहिए और इस मुद्दे को उठाने वाले याचिकाकर्ताओं को उनके "चयनात्मक जनहित" को समझाने के लिए बुलाया जाना चाहिए।सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 2007 में वरिष्ठ पत्रकार बी.जी. वर्गिस (जिनकी 2014 में मृत्यु हो गई) और प्रसिद्ध गीतकार जावेद अख्तर तथा शबनम हाशमी द्वारा दायर अलग-अलग याचिकाओं का विरोध किया। उन्होंने कहा, "चयनात्मक जनहित क्यों? गुजरात और कुछ विशेष वर्षों ही क्यों? इन प्रायोजित याचिकाओं पर कभी भी विचार नहीं किया जाना चाहिए।"
दूसरी ओर, याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील नित्या रामकृष्णन ने दलील दी कि न्यायमूर्ति एच.एस. बेदी द्वारा जांच किए गए 17 कथित फर्जी मुठभेड़ मामलों में से तीन में प्रथम दृष्टया सबूत पाए गए थे। बेदी के नेतृत्व वाले पैनल और उसकी रिपोर्ट को "अर्थहीन" नहीं बनाया जाना चाहिए।
रामकृष्णन ने अदालत द्वारा नियुक्त निगरानी समिति द्वारा दी गई 2019 की रिपोर्ट में चिह्नित दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई पर जोर देते हुए कहा, "अब हमारे पास एक रिपोर्ट है। रिपोर्ट के साथ क्या किया जाना है?"
सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति बेदी को गुजरात में कथित फर्जी मुठभेड़ों की घटनाओं की विशेष टास्क फोर्स (एसटीएफ) द्वारा जांच की निगरानी के लिए गठित समिति का प्रमुख नियुक्त किया था।
तर्कों के गुण-दोष पर विचार किए बिना, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और संदीप मेहता की पीठ ने कहा: “हम इसे किसी और दिन सुनेंगे। इसे सुनना जरूरी है। हम इसे दो सप्ताह बाद लेंगे।”
पहले की सुनवाई में, मेहता ने कहा था कि याचिकाकर्ताओं के अधिकार और मकसद के बारे में गंभीर संदेह हैं और ये चुनिंदा जनहित याचिकाएं हैं। उन्होंने कहा था कि याचिकाकर्ताओं को अन्य राज्यों में हुई मुठभेड़ों की चिंता नहीं है बल्कि उनका ध्यान केवल गुजरात पर है।
--आईएएनएस
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