नई दिल्ली, 20 जनवरी (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि तलाक की कार्यवाही में पत्नी के खिलाफ क्रूरता के निष्कर्ष होने भर से घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत उसके गुजारा भत्ते से इनकार नहीं किया जा सकता।न्यायमूर्ति अमित बंसल ने आदेश में अधिनियम के तहत रखरखाव के दावों की स्वतंत्रता पर जोर दिया और प्रत्येक कानूनी प्रावधान पर उसके विशिष्ट संदर्भ में विचार करने के महत्व को रेखांकित किया।
उन्होंने यह भी देखा कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 29 के तहत अपील में सत्र न्यायालय द्वारा पारित आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में एक पुनरीक्षण याचिका दायर की जा सकती है।
यह फैसला एक सत्र न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ एक पत्नी की याचिका के जवाब में आया, जिसने निचली अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया था जिसमें पति को भरण-पोषण और मुआवजे के लिए प्रति माह एक लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। यह मामला 1991 में हुई एक शादी से जुड़ा है और उसी साल एक बच्चे का जन्म हुआ।
घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत 2009 में एक शिकायत दर्ज की गई थी, और मध्यस्थता के दौरान एक समझौता हुआ था।
मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने अपने आदेश में कहा था कि पत्नी को पति के हाथों "घरेलू हिंसा" का सामना करना पड़ा था। पति ने सत्र न्यायालय के समक्ष इस आदेश को चुनौती दी थी जिसने कोई अंतरिम गुजारा भत्ता तय किये बिना मामले को नए सिरे से सुनवाई के लिए ट्रायल कोर्ट में वापस भेज दिया।
न्यायमूर्ति बंसल ने कहा कि पत्नी द्वारा दायर रिट याचिका सुनवाई योग्य है और पति को 16 दिसंबर 2009 से 01 नवंबर 2019 तक अंतरिम भरण-पोषण के रूप में 50 हजार रुपये का मासिक भुगतान करने का निर्देश दिया।
अदालत ने कहा कि अंतरिम गुजारा भत्ता तय किए बिना मामले को रिमांड पर लेने का सत्र अदालत का निर्णय अनुचित था और इसमें तर्क का अभाव था। इसमें कहा गया है कि अपील का फैसला रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री के आधार पर किया जाएगा और दोनों पक्षों को 2019-20 के बाद परिस्थितियों में किसी भी बदलाव को ध्यान में रखते हुए अतिरिक्त सबूत पेश करने की स्वतंत्रता होगी।
--आईएएनएस
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