नई दिल्ली, 23 जनवरी (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को एक विधवा को 29 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति देने वाला अपना पिछला आदेश वापस ले लिया।केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय से अपना आदेश वापस लेने का आग्रह किया था।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने इस महीने की शुरुआत में अवसाद से पीड़ित विधवा को यह कहते हुए गर्भावस्था समाप्त करने की अनुमति दी थी कि इसके जारी रहने से उसके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है।
अदालत ने महिला की वैवाहिक स्थिति में बदलाव को नोट किया था, क्योंकि उसने अपने पति को खो दिया था। उसके बाद उसे गर्भावस्था का पता चला।
इसने देखा था कि प्रजनन विकल्प के अधिकार में प्रजनन न करने का अधिकार भी शामिल है और महिला की आत्महत्या की प्रवृत्ति को स्वीकार किया गया था।
केंद्र सरकार ने बच्चे के जीवित रहने की उचित संभावना का हवाला देते हुए अदालत से अजन्मे शिशु के जीवन के अधिकार को प्राथमिकता देने का आग्रह किया था।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), जहां महिला की जांच हुई, ने भी अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए कहा था कि 34 सप्ताह या उससे अधिक समय में बच्चे को जन्म देने से मां और बच्चे दोनों के लिए बेहतर परिणाम मिलेंगे।
इसने इस बात पर जोर दिया था कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम के अनुसार, 24 सप्ताह से अधिक की समाप्ति को महत्वपूर्ण असामान्यताओं के लिए आरक्षित किया जाना चाहिए, जो इस मामले में मौजूद नहीं हैं।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी के माध्यम से केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने कहा था कि भ्रूणहत्या किए बिना गर्भपात से जटिलताओं के साथ समय से पहले प्रसव हो सकता है।
न्यायमूर्ति प्रसाद ने महिला के अवसाद और संभावित जटिलताओं की रिपोर्ट पर विचार करते हुए उसे 16, 17 और 18 जनवरी को एम्स में आगे के मनोरोग मूल्यांकन और परामर्श से गुजरने का निर्देश दिया था।
अदालत ने एम्स से महिला और भ्रूण दोनों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा था।
अदालत के पहले के आदेश में विधवा को 24 सप्ताह की गर्भधारण अवधि पार करने के बावजूद एम्स में गर्भपात प्रक्रिया से गुजरने की अनुमति दी गई थी।
महिला की शादी फरवरी 2023 में हुई थी। अक्टूबर में उसने अपने पति को खो दिया। अपने माता-पिता के घर लौटने पर, उसे पता चला कि वह 20 सप्ताह की गर्भवती थी। दिसंबर में, गहरे आघात से जूझते हुए, उसने गर्भावस्था को समाप्त करने का विकल्प चुना। गर्भधारण की अवधि अनुमेय 24 सप्ताह से अधिक होने के बावजूद, उसने अदालत से अनुमति मांगी। अनुरोधित गर्भावस्था समाप्ति के लिए उसकी स्वास्थ्य स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया था। अदालत ने यह भी कहा कि आदेश मामले के लिए विशिष्ट था, न कि कोई मिसाल।
--आईएएनएस
एकेजे/