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पवार बनाम पवार : बारामती में वर्चस्व की लड़ाई

प्रकाशित 01/04/2024, 02:09 am
पवार बनाम पवार : बारामती में वर्चस्व की लड़ाई

मुंबई, 31 मार्च (आईएएनएस)। बारामती राष्ट्रीय स्तर पर विकास मॉडल के रूप में उभरा है, लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव के दौरान यह शरद पवार और उनके भतीजे अजित पवार के बीच युद्ध का मैदान बन गया है।संयोग से, पवार की बेटी और तीन बार की सांसद सुप्रिया सुले को अजित पवार की पत्‍नी सुनेत्रा पवार के खिलाफ खड़ा किया गया है, जो हाल तक सामाजिक कार्यों से जुड़ी हुई थीं।

ननद-भाभी की लड़ाई से बारामती को पूरे देश में प्रसिद्धि मिल गई है, क्योंकि दोनों पवार गुटों ने चुनाव को प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया है। संयोग से, वरिष्ठ पवार और अजित पवार तथा सुप्रिया और सुनेत्रा दोनों लगातार अलग-अलग रास्ते अपनाकर चुनावी लड़ाई को वैचारिक लड़ाई और विकास के लिए पेश कर रहे हैं।

विडंबना यह है कि पवार परिवार में विभाजन खुलकर सामने आ गया है, क्योंकि अजित पवार के सगे भाइयों और भतीजों के अलावा, पवार की बहनों सहित बड़ी संख्या में परिवार के सदस्य सुप्रिया की जीत के लिए खुलेआम प्रचार कर रहे हैं। इसने अजित पवार को यह बयान देने के लिए मजबूर किया है कि वह, उनकी पत्‍नी और दो बेटे अलग-थलग हैं और मौजूदा लड़ाई में उन्हें परिवार के अन्य सदस्यों से मुकाबला करने के लिए छोड़ दिया गया है।

विशेष रूप से, वरिष्ठ पवार ने अपनी उम्र का हवाला देते हुए भावनात्मक अपील करने से परहेज किया है, हालांकि उन्होंने एक सख्त संकेत भेजा है कि लड़ाई वास्तविक है, क्योंकि उनके अलग हो चुके भतीजे के साथ सुलह की संभावना बहुत कम है।

सर्वश्रेष्ठ सांसद पुरस्कारों की विजेता सुप्रिया अपने पिता की सद्भावना और उनके छह दशकों से अधिक के राजनीतिक जीवन के दौरान बारामती और देश के लिए शानदार योगदान के अलावा तीन कार्यकालों के दौरान अपने काम पर वोट मांग रही हैं। दूसरी ओर, सुनेत्रा अपने पति अजित पवार के करिश्मे और विकास के एजेंडे को सक्रिय रूप से अपनाने में उनके 'नो नॉनसेंस' रवैये पर काफी निर्भर हैं।

सुप्रिया मतदाताओं से अपील करने में काफी स्पष्ट रही हैं कि लोकसभा चुनाव महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह लोकतांत्रिक व्यवस्था को और मजबूत करने और संविधान की रक्षा के लिए बनाई जाने वाली नीतियों के भाग्य का फैसला करेगा। इसके अलावा, वह घटते रोजगार के मौके, बढ़ती मुद्रास्फीति, अमीर और गरीब के बीच बढ़ते विभाजन, केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग और एक दशक के घोटालों और लीपापोती को हरी झंडी दिखा रही हैं।

चुनावी बांड पर हालिया विवाद को सुप्रिया ने पीएम मोदी के 10 साल के शासन के दौरान सबसे बड़े घोटालों में से एक के रूप में प्रमुखता से उजागर किया है। जहां तक बारामती का सवाल है, सुप्रिया पानी की कमी, बारामती की तर्ज पर अन्य विधानसभा क्षेत्रों के विकास से जुड़े मुद्दे उठा रही हैं।

वहीं सुनेत्रा की अपील नरेंद्र मोदी को लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाकर देश की निरंतरता, स्थिरता और विकास को आगे बढ़ाने की है। वह अपने पति के सिद्धांत को दोहराती हैं कि एक डबल इंजन सरकार, जिसका प्रतिनिधित्व केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार और राज्य में भाजपा, शिवसेना और एनसीपी की महायुति सरकार कर रही है, समावेशी और सतत विकास के लिए समय की जरूरत है।

सुनेत्रा और उनके पति अजित पवार विकसित भारत का राग अलापते हुए पीएम मोदी की लहर और मोदी की गारंटी पर सवार हैं।

सुनेत्रा भले ही अपने नामांकन तक राजनीति में सक्रिय न हों, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि वह अपने सामाजिक कार्यों, विशेषकर पर्यावरण संरक्षण के नाम पर वोट मांग सकती हैं।

हालांकि चुनाव प्रचार अभी भी गति नहीं पकड़ पाया है, लेकिन मतदाताओं के बीच विभाजन अभी से दिखाई दे रहा है। पुराने गार्ड, किसान समुदाय और श्रमिक वर्ग वरिष्ठ पवार के साथ हैं, जबकि युवा अजित पवार के नेतृत्व में अपना विश्‍वास दिखा रहे हैं। हालांकि, तस्वीर तब साफ होगी, जब दोनों गुट घर-घर जाकर मतदाताओं तक अपनी पहुंच तेज कर देंगे।

पिछले कुछ वर्षों में बारामती में पहले पवार और बाकी लोगों के बीच और बाद में शिवसेना-कांग्रेस और भाजपा-शिवसेना के बीच लड़ाई देखी गई है। हालांकि, 2014 और 2019 के चुनावों के बाद से भाजपा ने बारामती में पर्याप्त पैठ बना ली है। हाल की अवधि में यह पहली बार है कि बारामती निर्वाचन क्षेत्र में परिवार के भीतर लड़ाई देखी जाएगी और पर्यवेक्षकों का कहना है कि भाजपा चाचा और भतीजे को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करने में सफल रही है।

छह विधानसभा क्षेत्रों में से बारामती और इंदापुर पर अजित पवार गुट का कब्जा है, दौंड और खंडकवासला पर भाजपा का और भोर व पुरंदर पर कांग्रेस का कब्जा है। जुलाई 2023 में एनसीपी में विभाजन के बाद शरद पवार के नेतृत्व वाले एक गुट का इनमें से किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में प्रतिनिधित्व नहीं है, लेकिन वह कांग्रेस विधायकों के समर्थन और पार्टी के अनुयायियों के साथ अंतर को पाटने के प्रति आश्‍वस्त है। अजित पवार का गुट अपने कार्यकर्ताओं के अलावा भाजपा से भी समर्थन पाने को लेकर आश्‍वस्त है।

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि भाजपा इंदापुर से पूर्व मंत्री हर्षवर्द्धन पाटिल को अपने साथ लाने में सफल रही, क्योंकि उन्होंने शुरू में अजित पवार के साथ अपनी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण सुनेत्रा को समर्थन देने पर आपत्ति जताई थी। हालांकि पाटिल अब भाजपा में हैं, उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस के साथ मुलाकात के बाद अजित पवार द्वारा आगामी विधानसभा चुनाव में इसी तरह के सहयोग के वादे के बाद सुनेत्रा के लिए काम करने पर सहमत हुए हैं।

--आईएएनएस

एसजीके/

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