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कांग्रेस का घोषणापत्र 'न्याय' और 'गारंटी' का करता है दावा, लेकिन क्या इसमें स्पष्ट दृष्टिकोण की है कमी?

प्रकाशित 06/04/2024, 02:33 am
कांग्रेस का घोषणापत्र 'न्याय' और 'गारंटी' का करता है दावा, लेकिन क्या इसमें स्पष्ट दृष्टिकोण की है कमी?

नई दिल्ली, 5 अप्रैल (आईएएनएस)। कांग्रेस पार्टी ने शुक्रवार को लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अपना घोषणापत्र जारी किया, जिसमें न्याय के पांच स्तंभों के तहत 'पांच न्याय और पच्चीस गारंटी' का वादा किया गया है। इसमें 'युवा न्याय', 'नारी न्याय', 'किसान न्याय', 'श्रमिक न्याय' और 'हिस्सेदारी न्याय' शामिल हैं।हालांकि, घोषणा पत्र जारी होने के कुछ ही घंटों के भीतर, कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में न्यूयॉर्क शहर और थाईलैंड की तस्वीरों के उपयोग के लिए खुद को भाजपा के निशाने पर पाया।

अब ऐसे में कांग्रेस के इस 'न्याय पत्र' से राजनीतिक विश्लेषक भी प्रभावित नजर नहीं आ रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इसमें एक अरब से अधिक आबादी की आकांक्षा को समझने की कमी साफ दिख रही है।

विश्लेषकों को यह भी लग रहा है कि इस घोषणा पत्र के वादों को पूरा करने के लिए कांग्रेस पार्टी पूरी तरह से ना तो तैयार है, ना ही इसके लिए ताकत झोंक रही है। एक तरफ पीएम मोदी 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने और अगले कुछ वर्षों में देश को दुनिया की तीसरी सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनाने की घोषणा कर रहे हैं। वहीं, कांग्रेस का यह घोषणा पत्र 'प्रगतिशील' कम और 'दिखावा' ज्यादा नजर आ रहा है।

कांग्रेस के इस घोषणा पत्र का विश्लेषण करने पर कुछ खामियां और कमियां साफ देखने को मिलती हैं :-

50% जातिगत आरक्षण की सीमा को तोड़ना :- कांग्रेस के घोषणापत्र में एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण सीमा को 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ाने का वादा किया गया है और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण लाने की भी योजना है। इसने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए नौकरियों में कोटा लाने का वादा किया है और 2025 से महिलाओं के लिए 50% नौकरियां सुरक्षित करने की भी योजना बनाई है। हालांकि, नौकरियों में अधिक महिलाओं को प्रोत्साहित करना एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन इसके साथ ही अन्य आरक्षण को लेकर जो वादे किए गए हैं, उसके गंभीर प्रभाव हो सकते हैं।

व्यक्तिगत कानूनों का चयन :- पार्टी ने पर्सनल लॉ में चयन की स्वतंत्रता का वादा किया है। हालांकि, इससे बहुविवाह, शरिया कानून सहित और अन्य कई कानूनों में अस्पष्टता आ जाएगी। इसको लेकर कोई स्पष्ट रूपरेखा नहीं होने के कारण, यदि कांग्रेस सत्ता में आती है, तो मुस्लिम आबादी शरिया कानून द्वारा शासित होने की मांग करेगी। बहुविवाह पर लगे रोक को हटाया जा सकता है और तीन तलाक कानून को रद्द किया जा सकता है। इसके अलावा, यह समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर पार्टी की स्पष्ट स्थिति को दर्शाता है कि कांग्रेस इसे समाप्त करेगी। जबकि, इस कानून के बारे में भाजपा का कहना है कि यह मजबूत और एकजुट भारत की नींव रखेगा।

कानूनी गारंटी वाली घोषणाएं :- गरीब परिवारों की महिलाओं को सालाना 1 लाख रुपये देने, फसलों के एमएसपी पर कानूनी गारंटी देने और बेरोजगार युवाओं को अप्रेंटिसशिप देने के कांग्रेस के वादे से सरकारी खजाने पर भारी बोझ पड़ेगा। इन चुनावी वादों पर अत्यधिक खर्च सरकार और देश की अर्थव्यवस्था को अस्थिर बना सकता है क्योंकि अनुमान है कि दो कार्यक्रमों का संयुक्त खर्च सालाना 15 लाख करोड़ रुपये से अधिक होगा। इस प्रकार यह बजट खर्च का एक तिहाई बनता है।

खाद्य मुद्रास्फीति में संभावित उछाल :- एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी पर कांग्रेस के रुख से फूड इन्फ्लेशन पैदा होने की संभावना है। यदि कांग्रेस सरकार निजी कंपनियों को घोषित एमएसपी मूल्य पर फसल खरीदने का निर्देश देती है, तो इससे कंपनियों के लिए खरीदी लागत बढ़ जाएगी और अंततः मुद्रास्फीति के आंकड़ों में यह स्पष्ट दिखाई देगी।

स्वेटशॉप को बढ़ावा देने की सोच के नुकसान :- कांग्रेस के घोषणापत्र में दावा किया गया है कि उसकी सरकार उन व्यवसायों को प्राथमिकता देगी जो अधिक संख्या में नौकरियां पैदा करते हैं यानी सेमीकंडक्टर और ड्रोन निर्माण जैसे रणनीतिक उद्योगों की तुलना में स्वेटशॉप (उच्च मात्रा वाले कम मूल्य वाले उत्पादों का निर्माण करने वाले सस्ते श्रम संचालित उद्योग) के निर्माण को प्रोत्साहन दिया जाएगा। यह सेमीकंडक्टर और ड्रोन निर्माण के प्रमुख केंद्र के रूप में उभरने के लिए भारत की तैयारी के बिल्कुल विपरीत होगा, साथ ही भारत जो वैश्विक नेता का दर्जा प्राप्त करने के नए रास्ते तलाश रहा है, वह इससे कमजोर होगा।

इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख पर कांग्रेस के रुख ने भाजपा को उसकी प्रतिबद्धता और गंभीरता पर सवाल उठाने के लिए प्रेरित किया है।

कांग्रेस ने सत्ता में आने पर अग्निपथ योजना को खत्म करने का भी वादा किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस मुद्दे पर उसका रुख राजनीतिक मजबूरियों से प्रेरित है न कि व्यावहारिक समाधानों से। ऐसा करके पार्टी ने यह धारणा बनाने की कोशिश की है कि सेना में भर्ती बंद हो गई है, जबकि ऐसा नहीं है।

विशेष रूप से, पार्टी के घोषणापत्र में कांग्रेस पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को लेकर चुप रही, जो विधानसभा चुनावों में इसकी प्रमुख चुनावी मुद्दों में से एक थी और दो-कांग्रेस शासित राज्यों हिमाचल और राजस्थान में लागू भी की गई।

--आईएएनएस

जीकेटी/

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