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चुनावी घोषणापत्र में कांग्रेस की प्रस्तावित 'विदेश नीति' को विशेषज्ञ क्यों संदेह भरी नजरों से देखते हैं?

प्रकाशित 07/04/2024, 04:57 am
चुनावी घोषणापत्र में कांग्रेस की प्रस्तावित 'विदेश नीति' को विशेषज्ञ क्यों संदेह भरी नजरों से देखते हैं?

नई दिल्ली, 6 अप्रैल (आईएएनएस)। लोकसभा चुनाव के लिए अपने 48 पेज के घोषणापत्र में कांग्रेस की प्रस्तावित विदेश नीति को लेकर सोशल मीडिया पर एक बड़ी बहस छिड़ गई है। नेटिजन्स और कई कूटनीतिक विशेषज्ञों ने कांग्रेस की प्रस्तावित विदेश नीति की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'प्रभावशाली' विदेश नीति से तुलना करते हुए खामियों की ओर इशारा किया है। कांग्रेस के घोषणापत्र में शामिल महत्वपूर्ण बिंदुओं में से एक है गाजा पर उसका रुख, जिस पर सोशल मीडिया पर वैश्विक मामलों के विशेषज्ञों की भारी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।

उदाहरण के तौर पर, गाजा संघर्ष का हवाला देते हुए सबसे पुरानी पार्टी का कहना है कि वह "भारत की विदेश नीति में बदलाव को उलटना" चाहती है। एक्स पर कई विशेषज्ञों को हैरानी हुई कि "वह बदलाव क्या है"।

कांग्रेस की इस बात पर प्रतिक्रिया देते हुए कि वह गाजा संघर्ष पर भारत के रहे रुख को बहाल करेगी, उन्होंने तर्क दिया कि "भारत ने पीएम मोदी के तहत भी दो-राज्य समाधान पर अपना रुख नहीं बदला है"।

यह याद दिलाते हुए कि पीएम मोदी की आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता है, विशेषज्ञों ने सबसे पुरानी पार्टी पर कटाक्ष करते हुए पूछा, “हां, भारत ने हमास के आतंकवाद की निंदा की है। क्या कांग्रेस इसे उलटना चाहती है?”

लेकिन विदेश मंत्रालय ने इसके तुरंत बाद एक बयान जारी किया, जिसमें एक संप्रभु फिलिस्तीन राज्य के निर्माण के लिए भारत के आह्वान को दोहराया गया।

विदेश मंत्रालय ने कहा कि मानवीय सिद्धांतों को बनाए रखना एक "दायित्व" था। मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के लिए दो-राज्य समाधान की दिशा में बातचीत फिर से शुरू करने पर अपनी "लंबे समय से चली आ रही स्थिति" पर कायम है।

पीएम मोदी ने बाद में फिलिस्तीनी नेतृत्व से भी बात की और गाजा के युद्ध प्रभावित लोगों के लिए मानवीय सहायता भी भेजी। इसे गाजा मुद्दे पर एक संतुलित दृष्टिकोण के रूप में देखा गया।

इस पृष्ठभूमि में विशेषज्ञ कांग्रेस के इस दावे पर सवाल उठा रहे हैं कि "मोदी सरकार ने गाजा के प्रति रुख बदल दिया है तो वह बदलाव क्‍या है?"

सोशल मीडिया पर ऐसे विचारों की बाढ़ आ गई है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि "नेहरूवादी आदर्शवाद के कारण भारत को कई क्षेत्रों में अपने स्वार्थों की कीमत चुकानी पड़ी, जैसे यूएनएससी सीट, संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर मुद्दा, चीन का तुष्टीकरण और इसी तरह... "धीमी आर्थिक वृद्धि" का तो जिक्र ही नहीं किया जा रहा है।"

राजनयिक मामलों के एक विशेषज्ञ ने कहा, “पीएम मोदी की विदेश नीति यथार्थवादी सिद्धांतों पर आधारित है, जहां वह बड़ी शक्तियों के साथ संबंधों का लाभ उठाकर भारत की व्यापक राष्ट्रीय शक्ति को बढ़ा रहे हैं। 21वीं सदी में भारत को यही चाहिए।”

इसी तरह, व्यापार पर लंबित वार्ता को खत्‍म करने के कांग्रेस के वादे का सोशल मीडिया पर मजाक उड़ाया जा रहा है, कुछ एक्स उपयोगकर्ताओं ने आरोप लगाया कि यूपीए सरकार ने जो किया, उससे भारत में उत्पादकों का नुकसान हुआ।

उन्होंने कहा, "यूपीए के तहत व्यापार समझौतों पर अंधाधुंध हस्ताक्षर के कारण भारतीय उत्पादकों को नुकसान हुआ।"

इसी तरह, विशेषज्ञ कांग्रेस के इस वादे से भी प्रभावित नहीं हैं कि वह आतंकवाद को खत्म करने के लिए अन्य देशों के साथ मिलकर काम करेगी।

एक विशेषज्ञ ने कहा, ''यह और कुछ नहीं, बल्कि पाकिस्तान के साथ बातचीत की एक नरम शुरुआत है।''

कई लोगों ने यह भी कहा कि पीएम मोदी की नीतियों के तहत आतंकियों से सख्ती से निपटा गया है।

एक नेटिज़न ने कहा, "यह पीएम मोदी के नेतृत्व में एक नया भारत है जो अपने क्षेत्र के अंदर दुश्मनों को बेअसर करने में विश्‍वास करता है।"

दूसरे ने कहा, “मुंबई हमलों के बाद कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार क्या कर सकती थी? यह पाकिस्तान स्थित मास्टरमाइंडों और संचालकों को दंडित कराने में भी विफल रही।”

कांग्रेस के इस दावे पर कि "मोदी ने भारत की छवि को बर्बाद कर दिया है", विशेषज्ञों ने कहा कि इससे पता चलता है कि सबसे पुरानी पार्टी भारत विरोधी ताकतों द्वारा बनाई गई कहानी को आगे बढ़ा रही है।

--आईएएनएस

एसजीके/

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