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केंद्र ने धन विधेयक पर सुनवाई को प्राथमिकता देने पर आपत्ति जताई, सीजेआई बोले, 'इसे हम पर छोड़ दें'

प्रकाशित 13/10/2023, 12:59 am
केंद्र ने धन विधेयक पर सुनवाई को प्राथमिकता देने पर आपत्ति जताई, सीजेआई बोले, 'इसे हम पर छोड़ दें'

12 अक्टूबर, नई दिल्ली (आईएएनएस)। केंद्र ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की सात न्यायाधीशों की पीठ द्वारा रोजर मैथ्यू बनाम साउथ इंडियन बैंक लिमिटेड और अन्य मामले को प्राथमिकता देने पर आपत्ति जताई।केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सात न्यायाधीशों की पीठ से कहा कि मामलों को "राजनीतिक जरूरतों" के आधार पर प्राथमिकता नहीं दी जानी चाहिए।

संवैधानिक पीठ में शामिल प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बी.आर. गवई, सूर्यकांत, जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा सात-न्यायाधीशों और नौ-न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध विभिन्न मामलों में सुनवाई-पूर्व उठाए जाने वाले कदमों के लिए निर्देश पारित कर रहे थे।

यह समझाते हुए कि विचार इन मामलों को सुनवाई के लिए तैयार करने का है, सीजेआई ने कहा कि पीठ सभी सूचीबद्ध मामलों के लिए एक सामान्य आदेश पारित करेगी।

उपर्युक्त मामला, जो धन विधेयक के प्रश्न से संबंधित है, सात-न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध है।

सीजेआई ने कहा कि पीठ धन विधेयक मामले को कुछ प्राथमिकता देगी।

इस पर मेहता ने कहा, "हम अनुरोध करेंगे कि आपके आधिपत्य वरिष्ठता के आधार पर चलें। राजनीतिक जरूरतों के आधार पर प्राथमिकता तय नहीं किया जा सकता।"

उन्होंने बताया कि रोजर मैथ्यू मामला सात-न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष छह मामलों में से कालानुक्रमिक रूप से पांचवें मामले के रूप में सूचीबद्ध है।

इस पर सीजेआई ने जवाब दिया, ''यह हम पर छोड़ दीजिए, हम फैसला करेंगे।''

संविधान के अनुसार, धन विधेयक एक ऐसा विधेयक है, जिसमें राज्यसभा के पास संशोधन या अस्वीकार करने की कोई शक्ति नहीं है। यह सुझाव दे सकता है, लेकिन लोकसभा का निर्णय अंतिम होता है।

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संविधान का अनुच्छेद 110 धन विधेयक को एक ऐसे विधेयक के रूप में वर्णित करता है, जिसमें किसी भी कर को लगाने, समाप्त करने, छूट देने, परिवर्तन या विनियमन के संबंध में प्रावधान हैं; सरकारी उधार और वित्तीय दायित्वों, अभिरक्षा और भारत की समेकित निधि (सीएफआई) से धन के प्रवाह को विनियमित करना।

केंद्र द्वारा 2016 में आधार अधिनियम पारित किए जाने के बाद धन विधेयक का मामला विवादों में घिर गया था।

केंद्र ने आधार बिल को मनी बिल के तौर पर संसद में पेश किया था। आरोप लगाया गया कि चूंकि सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं था, इसलिए उसने उच्च सदन को दरकिनार करने के लिए विधेयक को धन विधेयक के रूप में पेश किया। इसी तरह के आरोप धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) में किए गए संशोधनों के लिए भी लगाए गए थे।

2019 में धन विधेयक के रूप में वित्त अधिनियम, 2017 की वैधता पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने आधार फैसले का अध्ययन किया और पाया कि इसने अनुच्छेद 110(1) में "केवल" शब्द के महत्व पर चर्चा नहीं की।

इसके बाद पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कई मामलों को एक बड़ी संवैधानिक पीठ के पास भेज दिया।

--आईएएनएस

एसजीके

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