iGrain India - मुम्बई । केन्द्रीय वित्त मंत्री ने तिलहन फसलों के उत्पादन संवर्धन पर विशेष ध्यान देने की घोषणा की है जिससे खाद्य तेल उद्योग को जल्दी से जल्दी एक मजबूत एक व्यावहारिक नीतिगत फ्रेमवर्क तैयार तथा लागू होने की उम्मीद है।
उद्योग को भरोसा है कि जिस तरह सरकार ने देश में ऑयल पाम के बागानी क्षेत्र के विकास-विस्तार के लिए ठोस रणनीति बनाई है उसी प्रकार अन्य तिलहन फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए ठोस कार्य योजना तैयार कर सकती है। विदेशी खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता काफी बढ़ गई है और इस पर विशाल बहुमूल्य विदेशी मुद्रा खर्च हो रही है।
भारत में 1.35 लाख करोड़ रुपए से अधिक मूल्य के लगभग 150 लाख टन खाद्य तेलों का औसत वार्षिक आयात हो रहा है और इसके आयात पर देश की निर्भरता बढ़कर 60 प्रतिशत के करीब पहुंच गई है।
स्वदेशी तिलहन-तेल क्षेत्र शुरूआती चरण में इसे कम से कम आधा घटाकर 30 प्रतिशत पर सीमित रखने हेतु आवश्यक नीतिगत सहयोग-समर्थन की मांग कर रहा है।
अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार सरसों, मूंगफली, तिल, सोयाबीन एवं सूरजमुखी जैसी प्रमुख तिलहल फसलों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए एक रणनीति तैयार करेगी।
हालांकि सरकार तिलहन-तेल क्षेत्र की समस्याओं, बाधाओं एवं चुनौतियों को दूर करने हेतु एक ठोस रणनीति बनाने की बात बहुत पहले से कर रही है लेकिन इस दिशा में अभी तक कोई खास प्रगति नहीं हुई है।
स्वदेशी उद्योग लम्बे समय से आरबीडी पामोलीन के आयात पर अंकुश लगाने का आग्रह कर रहा है मगर सरकार इसे नजर अंदाज कर रही है। इंडियन वैजिटेबल ऑयल प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (इवपा) के अध्यक्ष का कहना है कि सरकार ने ऑयल पाम उद्योग के विकास-संवर्धन हेतु एक बेहतर नीतिगत फ्रेमवर्क लागू किया है और उम्मीद की जाती है
कि अन्य तिलहन फसलों के लिए भी इसी तरह का फ्रेमवर्क लागू किया है और उम्मीद की जाती है कि अन्य तिलहन फसलों के लिए भी इसी तरह का फ्रेमवर्क क्रियान्वित करेगी। सरकार इस दिशा में आवश्यक धनराशि का आवंटन सुनिश्चित करके तिलहन उत्पादन बढ़ाने में बेहतर सहयोग दे सकती है।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सी) के अध्यक्ष का कहना है कि तिलहन फसलों की उच्च उत्पादकता वाली किस्मों के विकास एवं अनुसन्धान पर विशेष जोर दिया जाना चाहिए बड़े पैमाने पर खेती के आधुनिक तरीक़े को अपनाया जाना चाहिए और बाजार सम्पर्क की दुरुस्त व्यवस्था होनी चाहिए। इसके साथ-साथ खरीद, मूल्य संवर्धन एवं फसल बीमा पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।