लखनऊ, 21 मार्च (आईएएनएस)। किसान ज्यादातर फसलों के अवशेषों को खेत में ही जला देते हैं। लेकिन अब फसलों के अवशेषों को खेत में जलाने की परंपरा किसानों को छोड़नी होगी। किसानों ने ऐसा नहीं किया तो उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। कृषि वैज्ञानिक डॉ. संजय कुमार द्विवेदी ने यह बयान दिया। उनका कहना है कि फसल अवशेषों में पोषक तत्वों का खजाना है। जिसके जलाने से किसानों की खेती योग्य भूमि में पोषक तत्वों की भारी कमी हो जाती है।
दूसरी ओर यदि किसान फसलों के अवशेषों को खेत में जोत दें तो उन्हें फायदा होगा। ऐसा करने पर भूमि के कार्बनिक तत्वों, बैक्टिरिया फफूंद का बचना, पर्यावरण संरक्षण और ग्लोबल वार्मिग में कमी जैसे लाभ बोनस में मिलते हैं।
डॉ. द्विवेदी का कहना है कि रिसर्च से साबित हुआ है कि बचे डंठलों में एनपीके की मात्रा क्रमश 0.5, 0.6 और 1.5 फीसद होती है। जलाने की बजाए अगर खेत में ही इनकी कंपोस्टिंग कर दी जाए तो मिट्टी को एनपीके की क्रमश 4, 2 और 10 लाख टन मात्रा मिल जाएगी।
अगली फसल में करीब 25 फीसद उर्वरकों की बचत से खेती की लागत में कमी आएगी और लाभ बढ़ जाएगा।
गोरखपुर पर्यावरण कार्य समूह के एक अध्ययन के अनुसार, प्रति एकड़ फसलों के अवशेष जलाने पर पोषक तत्वों नष्ट होते ही हैं, इनके अलावा 400 किग्रा उपयोगी कार्बन, प्रतिग्राम मिट्टी में मौजूद 10 से 40 करोड़ बैक्टीरिया और 1-2 लाख फफूंद भी जल जाते हैं।
उत्तर प्रदेश पशुधन विकास परिषद के पूर्व जोनल प्रबंधक डा. बीके सिंह के मुताबिक, प्रति एकड़ अवशेषों से करीब 18 क्विंटल भूसा बनता है। सीजन में भूसे का प्रति क्विंटल दाम करीब 400 रुपए माना जाए तो 7,200 रुपये का भूसा नष्ट होता है।
--आईएएनएस
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