नई दिल्ली, 30 मई (आईएएनएस)। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को कहा कि मोदी सरकार द्वारा 2016 में पेश दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) ने कर्जदार-कर्जदाता के संबंधों में एक आदर्श बदलाव लाया है। यह व्यवस्था दिवालियापन को हल करने के लिए एक सुव्यवस्थित, वन-स्टॉप समाधान प्रदान करता है।
उन्होंने 2019 की विश्व बैंक की एक रिपोर्ट का हवाला दिया। इसमें कहा गया था कि भारत के 2016 के दिवाला शासन सुधार ने कर्जदाता वसूली दरों को डॉलर पर 26.5 से 71.6 सेंट तक बढ़ा दिया। इससे भारत 'दक्षिण एशिया में अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला' बन गया और ओईसीडी उच्च आय वाली अर्थव्यवस्थाओं की औसत वसूली दर को भी पीछे छोड़ दिया।
एक्स पर एक विस्तृत नोट में, वित्त मंत्री ने पूर्ववर्ती कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार को इस बात के लिए आड़े हाथों लिया कि वह इस सुधार पर अपने कदम पीछे खींच रही थी, जबकि कई विशेषज्ञ समूहों द्वारा वर्षों से रघुराम राजन के नेतृत्व वाली वित्तीय क्षेत्र सुधारों पर समिति (2008) सहित आधुनिक कॉर्पोरेट दिवालियापन व्यवस्था की आवश्यकता पर प्रकाश डाला जा रहा था।
समिति ने कहा था,“देरी (कभी-कभी अंतहीन) के कारण, सिस्टम परिसंपत्तियों के उनके सर्वोत्तम उपयोग के लिए फिर से आवंटन को रोकता है, और कमजोर देनदारों की परिसंपत्ति मूल्यों को बहुत अधिक बर्बाद करता है, जो अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह है। भारत में किसी व्यवसाय को बंद करने में भी लंबा समय लगता है। चीन में 1.7 वर्षों की तुलना में भारत में यह औसतन 10 वर्ष का समय होता है।”
वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा कि, जीएसटी की तरह, कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार में आम सहमति बनाने और सुधारों को लागू करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं थी।”
वित्त मंत्री ने कहा कि आईबीसी कोड की सफलता को संख्याओं के माध्यम से भी देखा जा सकता है।
उन्होंने कहा, "पूर्ववर्ती औद्योगिक एवं वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड (बीआईएफआर) व्यवस्था ने 1987 में अपनी स्थापना के बाद से लगभग 30 वर्षों में 3,500 से भी कम मामलों का समाधान किया। इसके विपरीत, 2016 में अपनी स्थापना से लेकर मार्च 2024 तक, आईबीसी ने 3,171 संकटग्रस्त कंपनियों को बचाया और घाटे की कंपनियों को बंद करने में सहायता की।"
"विशेष रूप से, समाधान की गई कंपनियों में से 40 प्रतिशत पहले निष्क्रिय थीं, जो स्थिर व्यवसायों को पुनर्जीवित करने की इसकी क्षमता को दर्शाता है। कुल मिलाकर, कर्जदाताओं द्वारा 3.36 लाख करोड़ रुपये की राशि वसूल की गई है, जो दावा की गई राशि का लगभग 32 प्रतिशत और परिसमापन मूल्य का 162 प्रतिशत है।
उन्होंने कहा, "औसतन, समाधान योजनाएं संकटग्रस्त कंपनियों के उचित मूल्य का लगभग 85 प्रतिशत प्राप्त कर रही हैं। इस वसूली ने कर्जदाताओं को अतिरिक्त ऋण प्रदान करने में मदद की है। इससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला है।"
वास्तव में, आईआईएम अहमदाबाद द्वारा आईबीसी समाधान प्रक्रिया की प्रभावशीलता पर हाल ही में किए गए एक नमूना अध्ययन में पाया गया कि कंपनियों में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं।
जैसा कि अध्ययन के ग्राफिक्स से देखा जा सकता है, समाधान के तीन साल बाद, उनकी औसत बिक्री में 76 प्रतिशत की वृद्धि हुई, कर्मचारियों की संख्या लगभग दिवालियापन से पहले के स्तर पर पहुंच गई, औसत कुल संपत्ति में 50 प्रतिशत की और पूंजीगत व्यय में 130 प्रतिशत की वृद्धि हुई (जो मूर्त संपत्तियों के निर्माण का संकेत है)।
इसके अलावा, जैसा कि हाल ही में आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने उल्लेख किया है, आईबीसी ने भारत में ऋण संस्कृति को मौलिक रूप से बदल दिया है। इससे देनदारों को दिवालियापन कार्यवाही शुरू होने से पहले ही अपने बकाये का निपटान करने के लिए प्रेरित किया गया है।
अधिक जिम्मेदार ऋण व्यवहार की ओर बदलाव का प्रमाण 10 लाख करोड़ रुपये से अधिक की चूक से जुड़े 28,800 से अधिक आवेदनों को उनके प्रवेश (मार्च 2024) से पहले वापस लेना है।
वित्त मंत्री ने बताया कि आईबीसी द्वारा परिसमापन पर समाधान को प्राथमिकता देने से नौकरियों को संरक्षित करने, परिसंपत्तियों के मूल्य को बनाए रखने और यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि व्यवसाय अर्थव्यवस्था में योगदान देना जारी रख सकें। इसका प्रमाण आईबीसी के तहत स्वीकृत समाधान योजनाओं की लगातार बढ़ती संख्या से मिलता है।
कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा, "दिवालियापन कानून बनाने की सख्त जरूरत के बावजूद, यूपीए सरकार ने जानबूझकर बैंकों और परिचालन लेनदारों की कीमत पर अपने साथियों को पुरस्कृत करने की कोशिश की, जिन्हें अपना बकाया वसूलने के लिए दर-दर भटकना पड़ा।"
उन्होंने कहा कि आईबीसी ने बैंकों को यूपीए के कार्यकाल के दौरान कांग्रेस और उसके सहयोगियों द्वारा 'फोन बैंकिंग' और अंधाधुंध ऋण देने के माध्यम से बनाए गए एनपीए संकट से उबरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
वित्त मंत्री ने आरबीआई की एक रिपोर्ट का भी हवाला दिया। इसमें कहा गया है कि बैंकों के लिए संकटग्रस्त परिसंपत्तियों की वसूली के लिए आईबीसी प्रमुख तंत्र के रूप में काम करता रहा। यह 2022-23 में विभिन्न चैनलों के बीच अब तक की सबसे बड़ी वसूली (कुल वसूली गई राशि का 43 प्रतिशत) के लिए जिम्मेदार है।
आईबीसी के कार्यान्वयन के बाद, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (जीएनपीए) अनुपात कई वर्षों के निचले स्तर तीन प्रतिशत और शुद्ध गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनएनपीए) अनुपात 0.7 प्रतिशत (दिसंबर 2023 तक) तक गिर गया।
वित्त मंत्री ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने विवादास्पद मुद्दों को सुलझाने के लिए कई ऐतिहासिक फैसले दिए हैं और आईबीसी की विधायी भावना और मंशा की पुष्टि की है।
वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा, "आईबीसी जैसे कानून मोदी सरकार की दूरगामी सोच और दूरदर्शिता का प्रमाण हैं। यूपीए काल के पुराने कानूनों की लालफीताशाही से मुक्त होकर आज पूरी अर्थव्यवस्था इस ऐतिहासिक कानून का लाभ उठा रही है।"
--आईएएनएस
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