नई दिल्ली, 18 सितंबर (आईएएनएस)। बुधवार को श्रीपाद दामोदर सातवलेकर रचित वेदों का हिंदी भाषा में विमोचन किया गया। इस दौरान लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ के पूर्व कुलपति रमेश कुमार पांडे ने आईएएनएस से खास बातचीत की। लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ के पूर्व कुलपति रमेश कुमार पांडे ने आईएएनएस को बताया, "वेद बहुत प्राचीन है। ये सृष्टि से भी ज्यादा प्राचीन है। इसमें कुछ नया नहीं है। लेकिन श्रीपाद दामोदर सातवलेकर जी ने इन वेदों को हिंदी भाषा में बदला, जिसका नाम रखा गया सुबोध भाष्य, जिससे आसानी से लोगों को समझ में आए। पहले ये बहुत ही कठिन थे। लोगों के लिए पढ़ना आसान नहीं था।"
उन्होंने आगे बताया कि भारत सरकार ने अपनी दुर्लभ ग्रंथ प्रकाशन योजना के अंतर्गत इसको मुद्रित किया। लेकिन जब वह भी खत्म हो गए तो फिर से छपने के लिए प्रूफ रीडिंग करना बहुत कठिन काम था। ऐसे में उसका फोटो प्रिंट किया गया, लेकिन फोटो प्रिंट ठीक नहीं आने की वजह से अक्षर साफ नहीं आ रहे थे। लोगों को पढ़ने में परेशानी हो रही थी। इसकी टाइपिंग और प्रूफ रीडिंग करना बहुत ही जटिल था, इस पर लगातार 10 वर्षों तक काम किया गया और फिर कंप्यूटर में अंकित किया गया।
उन्होंने आगे बताया, "पुस्तक का विमोचन आरएसएस के सर संचालक डॉ मोहन भागवत के कर कमलों द्वारा किया गया। बहुत सारे विद्वानों ने इस पुस्तक में अपनी भूमिका दी है। आज उन सभी को सम्मानित किया गया है। इसका संशोधन और संपादन किसी एक के बस की बात नहीं थी। इसमें सभी विद्वानों ने अपना सहयोग दिया है।"
ज्ञात हो कि, श्रीपाद दामोदर सातवलेकर रचित वेदों के हिंदी भाषा में विमोचन कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत मौजूद थे। उन्होंने ही पुस्तक का विमोचन किया और इसमें योगदान देने वाले सभी लोगों को सम्मानित किया। इस प्राचीन ग्रंथ के हिंदी रूपांतरण में 10 साल का समय लगा। जिसके टाइपिंग और प्रूफ रीडिंग में बहुत समय लगा था।
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