नई दिल्ली, 21 दिसंबर (आईएएनएस)। सबका विश्वास विरासत विवाद समाधान योजना 2019 पर कैग की ऑडिट रिपोर्ट में कुछ कमियों का खुलासा किया गया है, जो मुख्य रूप से ऑनलाइन प्रणाली को डिजाइन करने में अपर्याप्तता, कानूनी प्रावधानों और सीबीआईसी के निर्देश का पालन, विवादित मामलों का निपटान और कर अपवंचकों को कर जाल में फंसाए रखने से संबंधित हैं।नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की ऑडिट रिपोर्ट बुधवार को संसद में पेश की गई। इसमें कहा गया है कि माल और सेवा कर, केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सेवा कर पर सबका विश्वास विरासत विवाद समाधान योजना 2019 (2022 की रिपोर्ट संख्या 14) में पाया गया कि अनियमित राहत की 28 घोषणाओं में 109.81 करोड़ रुपये उन घोषणाकर्ताओं को दिए गए, जिन्होंने अनुचित वस्तुओं के संबंध में राहत मांगी थी।
यह निष्पादन लेखापरीक्षा (ऑडिट) 52 चयनित आयुक्तालयों में आयोजित की गई थी।
रिपोर्ट के अनुसार, निर्दिष्ट समितियों ने अनियमित रूप से 21 घोषणाओं को संसाधित किया, जिसमें स्वैच्छिक प्रकटीकरण श्रेणी के तहत 7.01 करोड़ रुपये का बकाया कर शामिल था, हालांकि घोषणाकर्ताओं को पूछताछ, जांच, लेखापरीक्षा और फाइल रिटर्न के अधीन रखा गया था। नामित समितियों ने 14 योग्य घोषणाओं को खारिज कर दिया, जिससे 8.72 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ।
कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि बकाया के बजाय मुकदमेबाजी श्रेणी के तहत 17 घोषणाओं के अनियमित प्रसंस्करण के परिणामस्वरूप घोषणाकर्ताओं को 5.1 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राहत मिली। इसके अलावा, 90.51 करोड़ रुपये के कर बकाया वाली 65 घोषणाओं में संबंधित मामलों में पूर्व-जमा या जमा के साक्ष्य को ठीक से सत्यापित नहीं किया गया था।
ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि एसवीएलडीआरएस पोर्टल ने 273.53 करोड़ रुपये के कर बकाया वाले 208 मामलों में कई घोषणाओं को स्वीकार किया, जिसके परिणामस्वरूप कुछ मामलों की प्रक्रिया कई बार हुई।
सीएजी ने सिफारिश की कि विभाग समयबद्ध तरीके से उन मामलों को आगे बढ़ाने के लिए प्रभावी कदम उठा सकता है, जिन्हें योजना के तहत खारिज कर दिया गया था, साथ ही 28,825 मामले, जिनके लिए डिस्चार्ज सर्टिफिकेट जारी नहीं किए जा सके, विशेष रूप से अनुमानित देय राशि का भुगतान न करने के कारण।
रिपोर्ट के मुताबिक, स्वैच्छिक प्रकटीकरण मामले में देयता का निर्वहन नहीं किया गया था, उसे राजस्व के हित की रक्षा के लिए सख्ती से आगे बढ़ाया जाना चाहिए।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बकाया की मांग की पुष्टि की जाती है और इसकी कोई समाप्ति तिथि नहीं होती। यह संभव है कि कई घोषणाकर्ता निर्धारिती के रूप में जीएसटी शासन में चले गए हों, इसलिए उन पर वसूली की कार्रवाई की जा सकती है।
--आईएएनएस
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