सूरत, 28 जनवरी (आईएएनएस)। रत्न एवं आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद (जीजेईपीसी) को केंद्रीय बजट 2023-24 से काफी उम्मीदें हैं। अगर उनकी मांगों को पूरा किया जाता है तो इससे उद्योग को बढ़ावा मिलेगा और अधिक रोजगार सृजित होंगे।जीजेईपीसी के क्षेत्रीय अध्यक्ष विजय मंगुकी ने आईएएनएस को बताया कि परिषद ने केंद्रीय वित्त मंत्रालय को एक ज्ञापन सौंपकर कटे और पॉलिश किए गए हीरों पर आयात शुल्क में कमी की मांग की है। वर्तमान शुल्क 5 प्रतिशत है, इसे घटाकर 2.5 प्रतिशत करने की आवश्यकता है। यही पॉलिश किए हुए रत्नों पर भी होना चाहिए।
दूसरी मांग यह है कि केंद्र सरकार स्पेशल नोटिफाइड जोन में रफ डायमंड की बिक्री के लिए अलाउंस दे। यदि कच्चा हीरा बेचा जाता है, तो आयातक को 2 प्रतिशत इक्विलाइजेशन लेवी से छूट/स्पष्टीकरण दिया जाना चाहिए। प्राकृतिक हीरों के बाद प्रयोगशाला में विकसित हीरों की मांग चरम पर है। इसे ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक है कि इन हीरों को सस्ता किया जाए, जो कि प्रयोगशाला में निर्मित हीरों के निर्माण में प्रयुक्त होने वाले बीजों पर आयात शुल्क को समाप्त करके किया जा सकता है। इसने प्रयोगशाला में विकसित हीरों के निर्माण के लिए उपयोग की जाने वाली मशीनरी पर आयात शुल्क को समाप्त करने का भी अनुरोध किया है।
लैब में तैयार किए गए हीरों के साथ-साथ हीरे जड़ित आभूषणों की भी घरेलू बाजार में काफी मांग है। दुर्भाग्य से उच्च आयात शुल्क के कारण कीमती धातुओं की घरेलू कीमत बहुत अधिक है, जिसे कम करने की आवश्यकता है। इसके लिए सरकार को सोने/प्लेटिनम और चांदी पर आयात शुल्क 12.5 फीसदी से घटाकर 4 फीसदी करने की मांग है।
जबकि घरेलू आभूषण बाजार की सुरक्षा के लिए यह सुझाव दिया गया है कि सोने/चांदी/प्लैटिनम आभूषणों पर मूल सीमा शुल्क को 20 फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसदी किया जाना चाहिए। सेक्टर ने जीएसटी की तर्ज पर रेट्स एंड टैक्स रिफंड मैकेनिज्म शुरू करने की मांग की है। वह चाहता है कि निर्यात के समय शुल्क की कमियों को आयात शुल्क के साथ जोड़ दिया जाए।
उद्योग उम्मीद कर रहा है कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय सीमा शुल्क गोदाम (एमओओडब्ल्यूआर) योजना में निर्माण और अन्य संचालन के तहत रत्न और आभूषण क्षेत्र को कवर करेगा। योजना के तहत आयातकों को बिना ब्याज देनदारी के सीमा शुल्क आस्थगन का लाभ मिल रहा है। कोई निवेश सीमा या निर्यात दायित्व नहीं है। घरेलू बाजार में अंतिम माल बेचे जाने पर ही शुल्क देना पड़ता है। तैयार माल के निर्यात पर शुल्क पूरी तरह से माफ कर दिया जाता है।
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