रांची, 16 फरवरी (आईएएनएस)। राज्य भर की मंडियों में खाद्यान्न पर कृषि शुल्क लागू करने के नए कानून के खिलाफ राज्य भर के खाद्यान्न व्यवसायी हड़ताल पर चले गए हैं। उन्होंने दूसरे राज्यों से खाद्यान्न की आवक रोक दी है। राज्य भर की कुल 28 कृषि बाजार मंडियों में कारोबार पूरी तरह ठप पड़ गया है। राइस मिलर्स और फ्लोर मिल्स में उत्पादन पूरी तरह बंद कर दिया गया है।फेडरेशन ऑफ झारखंड चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज ने दावा किया है कि गुरुवार से ही कोई भी व्यवसायी बाहर से किसी भी प्रकार का खाद्यान्न नहीं मंगा रहा है। जाहिर है, आंदोलन अगर लंबा खिंचा तो राज्य में खाद्यान्न की किल्लत बढ़ सकती है।
राज्य में चावल को छोड़कर किसी भी खाद्यान्न के मामले में पूर्ण निर्भरता नहीं है। तमाम खाद्यान्न अन्य राज्यों से मंगाये जाते हैं। बताया जा रहा है कि प्रतिदिन अनाज की खपत के अनुसार ही व्यापारी ऑर्डर भी करते हैं। स्टॉक खत्म होते ही राज्य में अनाज का संकट गहरा सकता है। व्यावसायिक संगठनों के आंकड़े के अनुसार राज्य की मंडियों में प्रतिदिन 3500 टन चावल, 2500 टन गेहूं, 1500 टन आलू, 800 से 1000 टन प्याज, 700 से 800 टन दलहन की खपत है। पिछले दो दिनों से आवक बंद है।
बता दें कि राज्य सरकार ने विधानसभा के पिछले सत्र में मंडियों में खाद्यान्न पर कृषि शुल्क लागू करने का बिल पारित किया था। इसपर राज्यपाल की भी मंजूरी मिल गई है। व्यवसायियों का कहना है कि यह व्यवस्था महंगाई और आम लोगों की परेशानी बढ़ाने वाली है।
फेडरेशन ऑफ झारखंड चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के महासचिव डॉ अभिषेक रामाधीन ने कहा सरकार की हठधर्मिता के चलते व्यवसायियों को यह कठिन फैसला लेना पड़ा है। जब राज्य में खाद्य वस्तुओं की आवक बंद होगी, तो राज्य में माल की उपलब्धता कम हो जायेगी। इससे आनेवाले दिनों में परिस्थितियां विकट हो जायेंगी, लेकिन इसके लिए सरकार ही जिम्मेदार होगी। उन्होंने दावा कि इस हड़ताल से सरकार को करीब 200 से 250 करोड़ के प्रतिदिन के राजस्व का नुकसान हो रहा है।
फेडरेशन के के पूर्व अध्यक्ष प्रवीण जैन छाबडा ने कहा कि शुल्क प्रभावी होने के बाद यहां का व्यापार पडोसी राज्यों में शिफ्ट होने लगेगा जिससे सरकार को जीएसटी के रूप में भारी नुकसान होगा। झारखंड में बिक्री हेतु तैयार ज्यादातर माल दूसरे राज्यों के आयात किये जाते हैं। ऐसी वस्तुओं पर कृषि शुल्क लागू होने से यह किसी विपणन व्यवस्था की फीस न होकर सीधे एक टैक्स के रूप में प्रभावी होगा, जो जीएसटी के अतिरिक्त डबल टैक्सेशन होगा। अन्य राज्य से आयातित वस्तु पर अधिकतम स्लैब में कृषि शुल्क लगाए जाने से सीधे तौर पर आम उपभोक्ताओं को महंगाई झेलनी पड़ेगी। पूर्व में जब यह शुल्क प्रभावी था, तब यह भ्रष्टाचार का जरिया बन गया था। कृषि बाजार बोर्ड में व्याप्त अनियमितताओं को देखते हुए ही तत्कालीन सरकार ने इस शुल्क को शून्य कर दिया था। पुन: इस शुल्क को प्रभावी करने की दिशा में सरकार द्वारा लिये जा रहे किसी भी निर्णय को व्यापारी मानने को तैयार नहीं हैं। इसके विरोध में वृहद् आंदोलन किया जायेगा।
--आईएएनएस
एसएनसी/एएनएम