नई दिल्ली, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। स्टरलाइट कॉपर स्मेल्टर परिसर से 75 प्रतिशत से अधिक संचित जिप्सम को 26 जून से 30 सितंबर के बीच हटा दिया गया है और शेष 30,000 मीट्रिक टन आने वाले सप्ताहों में बेचे जाने की उम्मीद है। इसके साथ ही कंपनी मई 2023 के सुप्रीम कोर्ट के रखरखाव आदेश को पूरा करने की राह पर है।जिला कलेक्टर द्वारा नियुक्त नौ सदस्यीय स्थानीय स्तर की निगरानी समिति अब महत्वपूर्ण गतिविधियों की देखरेख कर रही है, जिसमें जिप्सम अवशेषों की निकासी, हरित पट्टी का रखरखाव और जंगली झाड़ियों और सूखे पेड़ों को हटाना शामिल है।
सामुदायिक समूहों और नागरिकों के बीच भी प्रत्याशा की भावना है क्योंकि जब सुप्रीम कोर्ट मामले की सुनवाई फिर से शुरू करेगा तो उन्हें अनुकूल परिणाम की उम्मीद है।
स्टरलाइट कॉपर की प्रवर्तक कंपनी वेदांता समूह ने भी परिचालन फिर से शुरू करने के लिए अनुबंध के आधार पर कच्चे माल और कुशल तथा अर्ध-कुशल श्रमिकों की आपूर्ति के लिए रुचि की अभिव्यक्ति (ईओआई) आमंत्रित करनी शुरू कर दी है। हालांकि परिचालन फिर से शुरू करना शीर्ष अदालत के फैसले पर निर्भर करेगा।
उल्लेखनीय है कि इन ईओआई में स्थानीय और क्षेत्रीय आवेदकों को प्राथमिकता दी जाएगी, जो समुदाय के हित के लिए कंपनी की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। व्यापार निकायों, ठेकेदार संघों और अन्य सहायता समूहों ने स्मेल्टर प्लांट को तत्काल फिर से खोलने के लिए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री, सांसदों और जिला कलेक्टर से बार-बार अपील की है, जो 25,000 से अधिक लोगों के लिए रोजगार के अवसर और आजीविका को पुनर्जीवित करेगा।
इन संगठनों में थूथुकुडी इंडस्ट्रियल सप्लायर्स एसोसिएशन, थूथुकुडी कॉन्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन, थूथुकुडी मक्कल वाझवधारा पधुकापु संगम और मनुनीथी फाउंडेशन शामिल हैं।
प्लांट के बंद होने से स्थानीय आबादी को नुकसान हुआ है। स्टरलाइट कॉपर ने एक लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान किया और 400 से अधिक डाउनस्ट्रीम उद्योगों, ट्रांसपोर्टरों और ठेकेदारों से जुड़ा, जिनमें से अधिकांश सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग की श्रेणी में थे।
कंज्यूमर यूनिटी एंड ट्रस्ट सोसायटी (सीयूटीएस) इंटरनेशनल के एक अध्ययन से पता चला है कि नौकरी छूटने से प्रभावित लोगों की मासिक आय 50 प्रतिशत तक कम हो गई है। इसी प्रकार, तूतीकोरिन के वी.ओ. चिदंबरनार बंदरगाह के राजस्व में संयंत्र बंद होने के बाद लगभग 100 करोड़ रुपये की गिरावट दर्ज की गई।
तांबे के उत्पादन में कमी का व्यापक प्रभाव पड़ा है, खासकर नए जमाने के उद्योगों पर। स्टरलाइट कॉपर ने 2018 में भारत की लगभग 40 प्रतिशत तांबे की ज़रूरतों को पूरा किया। इसके बंद होने से अचानक पैदा हुई कमी ने भारत को तांबे का शुद्ध आयातक बनने के लिए मजबूर कर दिया है। इससे पिछले चार साल में तांबे की कीमतें दोगुनी हो गई हैं।
इसके अतिरिक्त, हरित ऊर्जा उत्पादन के उपकरण, जैसे पवनचक्की, सौर पैनल और इलेक्ट्रिक वाहन, जो तांबे पर बहुत अधिक निर्भर हैं, की लागत में वृद्धि देखी गई है और स्वच्छ ऊर्जा अपनाने की गति धीमी हो गई है। स्टरलाइट कॉपर के बंद होने से न केवल भारत की कॉपर सुरक्षा और डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्यों पर बल्कि देश के 'आत्मनिर्भर' एजेंडे पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
हालाँकि, आज बड़े पैमाने पर लोगों के बीच जागरूकता और दृष्टिकोण में बदलाव आया है, जिन्होंने महसूस किया है कि संयंत्र को बंद करने का नेतृत्व बहुत हद तक एजेंडा-संचालित गैर सरकारी संगठनों ने किया था। थूथुकुडी का भविष्य काफी हद तक सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्भर करता है। एक सकारात्मक परिणाम से राष्ट्रीय और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा, सहायक उद्योगों को फलने-फूलने में मदद मिलेगी और भारत को विश्व तांबे के मानचित्र पर फिर से अपनी पकड़ बनाने में मदद मिलेगी। पर्ल सिटी उत्सुकता से सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहा है।
--आईएएनएस
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