प्रयागराज, 13 दिसंबर (आईएएनएस)। नशा करने के आरोप में बर्खास्त कांस्टेबल को बहाल करने का आदेश देते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी व्यक्ति की केवल बाहरी जांच यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं है कि वह नशे की हालत में है।अदालत ने नशे की जांच के लिए रक्त और मूत्र परीक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया।
पुलिस कांस्टेबल जय मंगल राम द्वारा दायर एक रिट याचिका को अनुमति देते हुए न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने मंगलवार को कांस्टेबल को बहाल करने का आदेश दिया।
कांस्टेबल को 2017 में ड्यूटी पर नशे में होने के दौरान कथित अनुचित व्यवहार के लिए बर्खास्त कर दिया गया था।
अदालत ने कहा, “वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता को चिकित्सा अधिकारी के पास ले जाया गया, जिसने याचिकाकर्ता की केवल बाहरी जांच की और शराब की गंध पाए जाने पर निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता ने शराब का सेवन किया था। इसलिए, केवल बाहरी जांच किसी व्यक्ति को शराब पीने का दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं है और यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि वह नशे की हालत में था।''
याचिकाकर्ता उस समय वाराणसी जिले की पुलिस लाइन में कांस्टेबल के पद पर कार्यरत था।
पूरी विभागीय जांच के बाद अदालत ने अपने फैसले में कहा, ''हमारा मानना है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ नशे के कारण वरिष्ठों/सहकर्मियों के साथ दुर्व्यवहार का कोई भी आरोप जांच के दौरान साबित नहीं हुआ क्योंकि याचिकाकर्ता के मूत्र या रक्त की जांच नहीं की गई थी। सजा का आदेश वैधानिक नियमों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए पारित किया गया था, इसलिए इसे अमान्य कर दिया गया है।''
--आईएएनएस
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