iGrain India - नई दिल्ली । दक्षिण-पश्चिम मानसून के सीजन में वर्षा कम होने, जुलाई-अगस्त में तापमान काफी ऊंचा रहने तथा कुछ क्षेत्रों में फसल पर कीड़े-रोगों का घातक प्रकोप होने से इस बार कपास का घरेलू उत्पादन घटने की संभावना है।
पहले केन्द्रीय कृषि मंत्रालय ने 2022-23 सीजन की तुलना में 2023-24 के वर्तमान मार्केटिंग सीजन के दौरान कपास का उत्पादन 336 लाख गांठ (170 किलो की प्रत्येक गांठ) से घटकर 316 लाख गांठ और कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने 318 लाख गांठ से गिरकर 295 लाख गांठ पर अटकने का अनुमान व्यक्त किया और अब कपास उत्पादन एवं उपयोग पर गठित समिति ने उत्पादन में 6 प्रतिशत की गिरावट आने की संभावना व्यक्त की है।
समिति की रिपोर्ट के अनुसार कपास का उत्पादन पिछले सीजन के 336.60 लाख गांठ से घटकर इस बार 316.57 लाख गांठ पर सिमट सकता है।
इसके तहत गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक एवं तमिलनाडु में उत्पादन घटने की संभावना है। कुछ क्षेत्रों में पिंक बॉलवर्म कीट के प्रकोप ने कपास की फसल को क्षतिग्रस्त कर दिया जबकि कई इलाकों में शुष्क एवं गर्म मौसम के कारण फसल का ठीक से विकास नहीं हो पाया।
इंडियन कॉटन फेडरेशन के सचिव का कहना है कि चालू सीजन के दौरान मुख्य चिंता रूई की आपूर्ति की नहीं बल्कि मांग की रहेगी। घरेलू मंडियों में कपास की औसत दैनिक आवक तो सुधरकर 70,000-1,00,000 गांठ के बीच पहुंच गई है लेकिन वैश्विक स्तर पर कॉटन यार्न, फैब्रिक्स एवं सूती वस्त्रों की मांग कमजोर बनी हुई है जो निश्चित रूप से एक कठिन चुनौती एवं चिंता की वजह है।
कपास का वैश्विक उत्पादन 3 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान लगाया गया है जिससे इसके स्टॉक में काफी वृद्धि हो सकती है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में रूई का भाव नरम पड़ता जा रहा है जिससे भारतीय रुई अपेक्षाकृत महंगी हो सकती है।
इससे न केवल कॉटन उत्पादों का भाव ऊंचा रहेगा बल्कि इसका और रूई का निर्यात भी प्रभावित होगा। 7 नवम्बर को शंकर -6 रूई का भाव 56,500 रुपए प्रति कैंडी चल रहा था।