iGrain India - नई दिल्ली । बेशक घरेलू बाजार में गेहूं की आपूर्ति एवं उपलब्धता बढ़ाने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा हर संभव प्रयास किया जा रहा है ताकि इसकी बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने में सहायता मिल सके।
मई 2022 में ही गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था जो अभी तक जारी है और निकट भविष्य में इसके बरकरार रहने की संभावना है। गेहूं के मूल्य संवर्धित उत्पादों के निर्यात पर भी रोक लगी हुई है।
इसके अलावा सरकार ने गेहूं पर भंडारण सीमा लागू कर रखी है जिसके तहत करीब 90-95 लाख टन के स्टॉक का खुलासा हुआ है। जून 2023 के अंतिम सप्ताह से सरकार ने खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत केन्द्रीय पूल से गेहूं की साप्ताहिक ई-नीलामी के माध्यम से बिक्री भी आरंभ कर दी है जो चालू वित्त वर्ष के अंत तक जारी रहेगी।
लेकिन उपरोक्त उपायों के बावजूद घरेलू बाजार (थोक मंडी) में न तो गेहूं की आपूर्ति एवं उपलब्धता में सुधार आ रहा है और न ही कीमतों में नरमी का कोई संकेत मिल रहा है। इसके बजाए गेहूं का दाम बढ़ता ही जा रहा है।
पिछले सप्ताह दिल्ली में यह 2500 रुपए प्रति क्विंटल पर पहुंच गया जो सरकार द्वारा नियत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 2125 रुपए प्रति क्विंटल से काफी ऊंचा है। अन्य प्रमुख मंडियों में भी गेहूं का दाम इस समर्थन मूल्य से ऊंचा चल रहा है।
दिलचस्प तथ्य यह है कि सरकार ने ओएमएसएस वाले गेहूं का आरक्षित मूल्य एफएक्यू श्रेणी का 2150 रुपए प्रति क्विंटल तथा यूआरएस श्रेणी का 2125 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित कर रखा है जो प्रचलित बाजार मूल्य से काफी नीचे है लेकिन इसके बावजूद सरकारी गेहूं की खरीद में मिलर्स द्वारा अपेक्षित उत्साह नहीं दिखाया जा रहा है।
समीक्षकों के अनुसार सरकार अब दो विकल्पों पर विचार कर सकती है। पहली बात तो यह है कि वह सीधे अपने स्तर से विदेशों से गेहूं का आयात करे या इस पर लगे 40 प्रतिशत के सीमा शुल्क को वापस लेकर प्राइवेट व्यापारियों को विदेशी गेहूं मंगाने की सुविधा प्रदान करे।
दूसरी बात यह है कि घरेलू प्रभाग में गेहूं के दबे-छिपे हुए स्टॉक को बाहर निकालने के लिए कोई ठोस तरीका अपनाए। आगे कुछ राज्यों में विधानसभा तथा अगले साल लोकसभा का चुनाव होने वाला है।