लखनऊ, 17 दिसंबर (आईएएनएस)। ज्योतिषीय कार्यक्रमों में शनि का ज्यादा प्रभाव काली चीजों में ज्यादा माना जाता है। ऐसे में ज्योतिष गुरुओं द्वारा 'शनि' के प्रभाव से बचने के लिए काले कुत्तों और काले बंदरों को खिलाने की सलाह दी जाती है, जिसके चलते इनकी मांग बढ़ गई है। काले बंदरों की संख्या हाल के महीनों में बढ़ी है।
राजू ने कहा, जो अब काले कुत्ते बेचकर प्रति माह 10,000 से 20,000 रुपये तक कमा लेते हैं, ''बेदाग काले कुत्तों की मांग हाल के महीनों में कई गुना बढ़ गई है जबकि काले बंदरों की मांग तुलनात्मक रूप से कम है क्योंकि हर कोई पालतू बंदर रखने को तैयार नहीं है। बिना किसी अन्य रंग के काले कुत्ते बेहद दुर्लभ हैं, लेकिन हमें मांग पूरी करनी होगी।''
राजू को ये काले कुत्ते कैसे मिले यह एक दिलचस्प कहानी है। करीब 30 साल का यह युवक अच्छी नस्ल के पिल्लों को चुराता है और फिर उन्हें काले रंग में रंग देता है।
उन्होंने कहा, ''वंशावली कुत्ते जो काले होते हैं (काले रंग में रंगे हुए) आसानी से 6,000 रुपये तक मिल सकते हैं, जबकि सड़क के कुत्ते जो बेदाग काले होते हैं, 1,000 रुपये से 2,500 रुपये तक बेचे जाते हैं। जब हमें अच्छी नस्ल के कुत्ते नहीं मिलते, तो हम आजीविका के लिए सड़क के कुत्तों पर निर्भर हो जाते हैं।''
हालांकि, वह इस बात पर जोर देते हैं कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए "अच्छी गुणवत्ता वाली हेयर डाई" का उपयोग करते हैं कि कुत्ते को एलर्जी न हो।
राजू और उसके जैसे आधा दर्जन अन्य 'उद्यमी' हर हफ्ते एक दर्जन से अधिक कुत्ते बेचने का प्रबंधन करते हैं।
''हमारे पास कोई दुकान नहीं है। हम सड़क किनारे कुत्तों के साथ बैठते हैं और कुछ ही समय में ग्राहक लाइन में लग जाते हैं।''
काले, भूरे या सफेद पिल्लों को काले रंग से रंगा जाता है और फिर बेचा जाता है।
राजू ने कहा, ''चूंकि हम अच्छी गुणवत्ता वाले रंगों का उपयोग करते हैं ताकि जानवरों को किसी भी प्रकार की एलर्जी न हो और रंगों को खत्म होने में दो से तीन महीने लग जाते हैं। तब तक ग्राहक और उसका परिवार उस जानवर से इतना भावनात्मक रूप से जुड़ जाते है कि उसके रंग बदलने के बावजूद वे उसे अपने पास रखते हैं।''
काले कुत्ते का व्यवसाय कई प्रमुख शहरों में फलफूल रहा है, काले बंदर का व्यवसाय मुख्य रूप से इलाहाबाद और वाराणसी जैसे पवित्र स्थानों तक ही सीमित है, जहां विदेशी पर्यटक काले बंदरों से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
कृपा ने कहा, जो भूरे बंदर भोले, जिसे काले रंग से रंगा गया है, के साथ वाराणसी के घाटों पर घूमता है, ''काले बंदर बहुत कम मिलते हैं और अगर हमारे पास काले बंदर हैं तो विदेशी पर्यटक हमें पैसे देते हैं। हमारे परिवार का भरण-पोषण करने के लिए बस एक काला बंदर ही काफी है।''
कृपा कहता हैं, ''मैं हर छह हफ्ते में भोले के बाल रंगते हूं ताकि उसके भूरे बाल नजर न आएं और वह मुझे मेरी रोजी रोटी दे दे।''
राजू और कृपा इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि कुत्तों और बंदरों को रंगने पर वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत कार्रवाई हो सकती है जो जानवरों पर रसायनों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है।
इस बीच, पुलिस का मानना है कि यह इतना मामूली कृत्य है कि इस पर ध्यान नहीं दिया जा सकता।
--आईएएनएस
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