नई दिल्ली, 21 अगस्त (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत 'रिपोर्टिंग संस्थाओं' के भीतर चार्टर्ड अकाउंटेंट, कंपनी सचिवों और लागत लेखाकारों को शामिल करने पर आपत्ति लेने वाली याचिका पर केंद्र से उसका रुख स्पष्ट करने के लिए कहा है।मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा को मामले में उचित निर्देश प्राप्त करने के लिए समय दिया, जिसमें याचिकाकर्ता रजत मोहन, जो पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं, ने 5 मई की राजपत्र अधिसूचना को चुनौती दी है। अधिसूचना के जरिये 'व्यक्ति' और 'क्रियाकलाप' शब्दों की परिभाषा का विस्तार किया गया है।
याचिका को 4 अक्टूबर को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है। इसमें कहा गया है कि पेशेवरों के एक वर्ग, यानी, चार्टर्ड अकाउंटेंट/कंपनी सचिव/लागत लेखाकार को 'रिपोर्टिंग इकाइयों' की परिभाषा में शामिल किया गया है। उन पर धन शोधन कानून के तहत भारी दायित्व डाल दिए गए हैं।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि सरकार के फैसले का प्रभाव यह होगा कि सीए और अन्य ऐसे पेशेवर अपने स्वयं के ग्राहकों के पीछे पुलिस लगाने के लिए प्रेरित होंगे, जिनके साथ उनका संबंध भरोसे पर टिका होता है।
याचिका में कहा गया है, "उपर्युक्त धाराएं प्राधिकरण को 'रिपोर्टिंग संस्थाओं' के खिलाफ कोई भी निर्देश पारित करने के लिए बेलगाम और असीमित, मनमानी और सनकी शक्ति देती हैं।''
इसमें आगे कहा गया है कि पीएमएलए का दायरा और अनुप्रयोग बेहद कठोर और सख्त है और यहां तक कि एक वास्तविक निरीक्षण भी रिपोर्टिंग संस्थाओं के जीवन, स्वतंत्रता और करियर को खतरे में डाल देगा।
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